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________________ शन जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. १४ जे वगरखोद्यं ते सरोवर, तथा इह, अने जे खण्यं होय ते तलाव कहियें इत्यादिकनां शोपण करवां धान्य वाववाने अर्थे तलावादिकमांथी पाणीनी नीक वालवी ते सर इह तलाव शोषण कर्म कहियें. १५ व्यने अर्थ उःशील दासी नपुंसकादिक गुक सारिका मयूर मार्जी र मर्कट ककड़ा श्वान नंम सूवरादिक, पोपण कर ते असतीपोपणकर्म कहियें केटनाएक एम कहे नेके गौडदेशनी पेठे दासीपोषण करीने ते सं बंधि व्यनिचारनुं नाई खाइ आजीविका करे तेपण एमां लेबु. ए पन्नरे कर्मादानना दोप घणा ने माटे उत्तम विवेकी श्रावकें न सेव वां ते सर्व कर्मना दोप देरवाडे . १ अंगारकर्ममां अग्नि सर्वमा मुख्य शस्त्र के अग्नि कायने आरंने का य जीवोनी हिंसा थाय माटे श्रावक ने अंगारकर्म निपि ने. २ वनकर्ममां वनस्पति श्राश्रयीजे त्रसजीवो रह्मा ने तेनी हिंसा थाय. ३-४ शकटकर्म तथा नाडीकर्ममां ताजादिक नपर नार वहन कराव तां मार्गमा नकाय जीवोनी घणी विराधना याय) ___५ स्फोटक कर्ममां दाणा कण दलवा नूमिकान खण, तेमा वनस्प तिकायनी विराधना थाय तथा पृथ्वी कायनी विराधना थाय तेमज ए वे दुने आश्रित रहेता त्रसादिक जीवोनी मोहोटी विराधना थाय ने. .६ अागरें जश्ने हाथीदांत चमरीगायना पूनडांप्रमुख त्रमजीवोनां अंग लेवामाटे ग्राहक आवेलो देखीने निलादिक लोक तरत हाथी नथा गाय आदिक जीवोने मारवा माटे प्रवन माटे दंतवाणिज्य श्रावकने निपिने. __७ लाखमांहे घणा त्रस जीव होय लाखनो रस रुधिर सरखो होय तथा धाउडीनी नाल तथा फूल ए सर्व मदिरानां अंग ले बालमांहे कीडा पडे . तथा गलीतो अनेक जीवोनी घात विना नीपजेज नही तथा म सील, हरताल वनक्षेपमांहे पण घणा संपातिम सजीवो एना फर सथकी मरण पामे तेमज घणा सजीव एमां आवी पडे तुंबरिकामा ट थ्वीकायादिक जीवनो घात थाय . तथा पडवासमांहे घणा त्रसजीव ने तथा टंकणवार, साबु, खारो ए पण वाह्यथी घणा जीवना विनाशना. हेतु ने माटे महादोपरूप तथा लादा दिकना व्यापारनो दोष मनुस्मृति मां कह्यो रे ॥श्लोक ॥ सद्यःपततिमांसेन, लादया लवणेन च ॥ त्र्यदेण
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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