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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. शर मज घूधडादिकने मारीने तेना नख काढे हंसादिक पदीने मारीने तेनां रोम लीये व्याघ्रादिकने मारीने तेनां चर्म लीये, चामरने अर्थ चमरी गाय ना पूबडां कापे, वली शंख, शिंगडां, बीप, कवडी, कस्तूरी पोसडादिक ए सर्व त्रसजीवोना अंग ने तेने लेवां ते दंतवाणिज्य कहियें. ___ ७ लाख, धावडी, गली, मणशील, हरताल, वज्रलेप तूंबादिक, पड वास,टंकणखार,साजीखार,साबु,खारादिनो विक्रय करवो ते लाख वाणिज्य. G मद्य, मद्यांग, मधु, मांस, माखण, दूध, दही, घृत, तेलादिक रसवा जीवस्तुनो व्यापार ते रसवाणिज्य कहियें. ए दास दासीप्रमुख मनुष्यनुं वेच, गाय, अश्वादिक, पोपट, मेना प्र मुख जीवोनो क्रय विक्रय करवो ते केशवाणिज्य कहियें. १० विप, अफीण, वचनाग, सोमल, शस्त्र, कोश, कोदाली, लोह, यं त्रादिक शस्त्रादिक हलादिक जीवघातक वस्तुनुं वेचq ते विषवाणिज्य क हिये. ए पांच प्रकारनां वाणिज्यने उत्तम विवेकिजनें बांसवां. ११ यंत्रपीलण कर्म ते निसातरो, नखल, मूसल, घरटी, घाणी, अर हट्ट कांकसी प्रमुखना व्यापार तथा तिल इदु सरसव एरंगफलनुं विदा रवू पीलतेल करवू तथा जलयंत्र ते अरहट्ट खेडवा इत्यादिक सर्वने यंत्र पीलन कर्म कहिये. अने योगशास्त्रमा तो घरट्टादिक यंत्रनो जे क्रय विक्रय करवो ते विपवाणिज्यमां कह्यो . १५ गाय, तृपनादिकना कान, कंबल, शिंगडां पूादिकनो बेद करवो, खासी करवा, नाक विंधवां, अांक देवो, गोधो करवो, दाढादिक कापवां, चामडी वालवी, उंटनी पीठ गालवी इत्यादिक सर्वने निलोडनकर्म कहियें. १३ वनमा घास घणुं होवाथी निलादिकथी शंकाइने सुखे फराय न ही माटे जो बाली नाखीयें तो सुखे फराय एवा हेतुथी अथवा जुर्नु घास बाली नाखीयें तो नवु घास घणुं उपजे तेथी गाय प्रमुख सर्व जनावरनां पेट नराय तेनो धर्म आपणने थाय एवा हेतुथी वन वाली नारखे अथवा खेत्र बालवाथी धान्य सारूं नीपजे एम जाणी खेत्रने बाले अथवा कौतु के करी अरण्य बाले एने दवदान कर्म कहियें. एवं सांनलीयें बैये जे नि लादिक पोताना मरण वखते एवं कहे जे के महारा मंगलिकने अर्थे धर्म दीवाली करजो एटले दव लगाडजो ए सर्व दवग्गिदावण्या कर्म जाणवू.
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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