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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ४ए ण कस्यो तेथकी उपर जो वृक्ष अथवा गिरिनां शिखरने विषे कोई वानरो अथवा पंखीयादिक जीव होय ते वस्त्र आनरणादिक लश्ने चुं चडी जा य तो तेने सेवा जावं कल्पे नहीं. परंतु जो ते पंखी अथवा वानर प्रमुख ना मुखमांथी पडी जाय अथवा बीजो कोई आणी आपे,तो ते लेवं कल्पे, केमके पोताने तो धारणा प्रमाणेज जावं कल्पे, उपरांत जावं कल्पे नहीं. ए नवंदिशि आश्रयी अष्टापद, समेतशिखर,अर्बुदाचल, चित्रकूट, अंजनगि रियने मेरु प्रमुखें संनवे अने अधोदिशि आश्रयी तो मुंशरा मांहे, रसकू पिका विवरादिकने विषे जाणवं. तथा तिर्यगदिशि आश्रयी तो पूर्वादिक चारेदिशिने विपे जेटलुं गमनागमन धायुं होय तेथकी अधिक गयेथके अतिचार लागे तेमाटे नियमित देवथकी आगल ढुं न जानं तथा बीजा ने न मोकलुं. इहां कोई नियमित देवथी बाहिरला देवमां जिहां बीजा पुरुषे जावानो नियम लीधेलो नयी एवो पुरुष जो पोतानी मेलेज कोई चीज वस्तु लश् याव्यो होय तो तेवी वस्तु लेवामां कांश दोप नथी एवं योगशास्त्रनी टीकामां कडं . ४ चोधुं देवदि ते सर्व दिशाउने विपे योजन शतादिकनुं परिमाण क घु जे तेमां एक दिशायें शो योजनथी उपरांत जावानुं काम पडयुं तेवारें लोने करीने केटलाएक योजन बीजी दिशाना परिमाणमां ना करी उक्त दिशामां वधारे, ते दिशिवृद्धि कहिये. एम करवा थकी प्रमाणनुं अतिक्रम थाय. पाडली दिशियें बोज अने आगली दिशियें वधारे जावे दिशिना योजन एकता करे तेवारे वे दिशिनी संख्या बराबर थाय,ए बाह्यवृत्तियें अ तिचार कहेवाय पण अंतरवृत्तियें तो व्रतनंगज थयु. ए रीतें अधिकदिशि जवानी ना करनारा जनने दिशाबाश्रीने अंगीकृत प्रमाणने अतिक्रमी दिशि तेणे नंग पण थयो वली दिशा उलंघ्यो नहीं, तेणे नहीं पण थयो, ए नंगानंग रूप चोथो अतिचार जाणवो. ५ पांचमो सश्यंतरक्षा स्मृत्यांतही ते स्मरणनो नाश थाय, ते जेम के पूर्वदिशियें शो योजन जावानुं परिमाण का ले, तेने गमनने अवस रें अति व्याकुलपणे प्रमादने वशे मतिनंशादिके करीने निश्चय रहे नहीं जे शो योजन किंवा पञ्चास योजन- परिमाण कयं जे एम संदेह रहे,तेम स्पष्टपणे योजननुं मान अगसंजारते पचास योजननी उपर गमन करे तो
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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