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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. १३५ य तेवा जणाववानी चिंता, जला गुणवान पणानी प्रतिष्ठा पमाडवानी चिंता रहे पछी नली रुडाकुलनी कन्या परणाववानी चिंता रहे. एम करतां कदाचित् पूर्वजन्मना सुकृतें करे सर्व वांछित संयोगनं सु ख पामे तो वली ते पामेला सुखनी चिंता रहे, के रखेने ए पामेली वस्तु नो महारे वियोग थाय ? कदापि ते वियोग पण न थाय तेवारे वली ए वी चिंता था के रखे महारा शरीरे रोगादि पीडा उपजे ? रखे मुजने जरा अवस्था यावे ? रखे हुं मरण पामुं ? एवी याश्यायें पीड्या थका परीग्रह वंत मनुष्य ते सदाकाल दुःखीया जाणवा. जेमाटे सुखनिर्वाहने विषे प ए सुख न जाणवुं. जे घणोज परीग्रह पाम्यो होय एवा धनवंत पुरुषने पण पोताने वापरवामां तो थोडोज परीग्रह उपयोगी थाय बे. शेष थाकतो परि ग्रहतो परने जोगमां खावे, तथापि निःकेवल तेवा परीग्रहनी चिंतादिकें क री याकुव्याकुल यातो रहे तेथी परिग्रह जे बे ते मूर्द्धादिकें करी इनवे ने परनवे दुःखनोज हेतु बे. जो शो गायो घरमां होय तोपण एकज गायनुं दूध जोगमां यावे तथा जो शो मुडा धान्य घरमां पड्युं होय तोपण जीवने जोगमांहे तो सेर य थवा मोढ से वे बे, तथा गमे एटलुं घर रहेवाने महोयुं होय तो पण मांचो ढालीयें एटलुंज नोग्यमां आवे छे, अनेक वस्त्र घरमा होय तोपण परवा माटे वे वस्त्रज जोगमां यावे बे. तेमज स्त्री पण प्रतिदि न एकज जोगमां यावे बे, एक दिवसमां वधारे जोगवाय नहीं. तेमज श य्या, श्रासन, हाथी, घोडा, रथ इत्यादि सर्व चीजो एकेकी जोगमां श्रावे बे. ते उपरांतनां बीजाने खर्थे जाएवां एटला माटे अल्पपरीग्रह राखे थके ज स्वल्प चिंता रहे ने निर्भयपणुं पण थाय. इत्यादिक गुणनी वृद्धि जा एगवी ॥ यतः॥ जहजह अप्पलोहो, जहजह अप्पोपरिग्गहारो ॥ तह तह मुह पव, धम्मस्य होइ संसिद्धि ॥ १ ॥ नावार्थ:- जेम जेम थो डो लोन होय, जेम जेम थोडो परीग्रह आरंभ होय, तेम तेम सुख प्रव ईमान थाय ने धर्मनी पण जली सिद्धता थाय ॥ १ ॥ कारण माटे मननी इष्वा संधीने संतोष पोषवाने अर्थे यत्न करवा. सु खनुं मूल ते संतोष ने कयुं बे के ॥ यतः ॥ श्रारोग सारिश्रं मालु, सत्त णं सचसारिन धम्मो ॥ विद्या निलय सारा, सुहाइ संतोस साराई ॥ १ ॥
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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