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रापा.
अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सदित. २३३ मांची, मसूरकादिक सर्व घर वखरीना उपकरण तेना स्थाल कचोलादिक नी संख्यार्नु परिमाण कयुं होय पनी जेवारें तेथकी अधिक राखवानी अ निलाषा थाय तेवारे पूर्वकत परिमाणनी संख्या कायम राखवा माटें न्हा ना स्थाल कचोलादिक जे होय तेने जाडा स्थूल करावे, ते कुप्यप्रमाणाति क्रमरूप चोथो अतिचार जाणवो.
पांचमो हिपद ते स्त्री, दास, दासी प्रमुख मनुष्य तथा हंस, मोर,कुर्कु ट, सूडा, सारिका, मेना,चकोर, पारेवा,प्रमुख पदी जाणवा. अने चतुष्प द ते गाय महीषी आदिक पूर्व दश नेद कह्या ले ते जाणवा. तेमां को गाय प्रमुख गर्नवाली होय तेवारें एवं विचारे जे ए गर्न तो बाहिर जोवा मां नथी पावतो माटे तेने गणनामां गणे नहीं, इत्यादिक हिपद चतुष्पद प्रमाणातिकमरूप पांचमो अतिचार जाणवो. __ अथवा धन धान्यादिक, खेत्र वस्तु आदिकना चार मासना नियम क स्या होय अने बागलानी साथें निश्चय करे के महारो नियम पूरण थशे तेवारें आ वस्तु ढुं तहारी पासेंथी लाश, तिहांसुधी तुं वीजा कोइने आ पीश नहीं एम कहेवाथी थापणरूप अतिचार जाणवो ॥५॥ शेप सुगम
विवेकी प्राणीयें धन धान्यादिक नवविध परीग्रह जे पोतानी पामें होय तेनो पण संदेपीने अवश्य परिमाण करवो. ते करवानी जो अशक्ति होय तो पण जेटली पोतानी इबा होय तेटलो नापरिमाण तो निश्चयें क रवोज. जेमाटे पोताना अनिप्राय प्रमाणे अंगिकार करतुं सर्वने शुलन ने.
यहां शिष्य पू के घरमां तो शो सोनैयानो पण संदेह होय अने जेवा रे परिग्रह परिमाण लीये तेवारें हजारो लारवो अने कोडो आदिकनो प रिमाए करी लीये एवी रीते शबानी वृद्धि करे तेमां श्यो गुण थाय ?
इहां गुरु उत्तर कहे जे के, श्वानी वृद्धि तो सर्वकाल सर्व संसारी जीवो ने प्रथम पण ले ते कांड पूरी पडती नथी. नेमीराजपीनी पेरें ॥ यतः॥ सुवन रूपस्सय पुवया नवे, सिया दु केश्लास समा असंखया ॥ नरस्त लुस्स नतिहिं किंचि, शबा दु आगास समा अणंतया ॥१॥ जावार्थःजीवें पूर्व कैलास सरखा सोनाना अने रूपाना असंख्याता पर्वत कथा पण लुब्धनरने ते किंचित्मात्र बा पूरण माटेन थया. ला जे मननी दोड ते थाकाश सरखी अनंती जाणवी ॥१॥ पण इहां परिमाणने विपे एटलुं वि