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________________ २२० जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. आवां राजानां वचन सांजली सार्थवाह बोल्यो के हे राजन् ! तमारा पसायथी माहरूं संपूर्ण कार्य नीपतुं ने तो पण जो तमें मारा ऊपर प्रस न हो तो मने कांगसुधी चालती वखत वोलावा श्रावो. कारण के तेथी करी देशांतरने विपे माहरी कीर्ति कांक आचर्यकारी पसरे, यशवाद घणो थाय. राजायें तेनुं वचन अंगीकार कत्युं. कवि कहे जे के अहह ? जून मोटा पुरुषनी अनुवृत्ति केवी ले ? के जे कांश साहामो धणी कहे ने ते सर्व प्रमाण करे . हवे ते सार्थवाहे गुज मूदुनै घणां वाहाण करियाणांथी जरीने समुह मां तैयार राख्यां अने पोते सुखपाले बेसी समुश् कांते गयो. त्यां राजा पण सुखपालें बेसी तेने वोलावा आव्यो, पातातसुंदरी पण सुरवपाले वेठी पोतानी बुद्धिथी श्रा कार्य नीपन्युं तेथी हर्ष पामती राजा पासें जा कहेती हवी के हे स्वामिन् ! अमोने प्रनुयें मोहोटो पसाय कस्खा. हे रा जन् ! तमारा पसायथी महारा स्वामी मोटी कि उपार्जी. तमारा पता यथी अमारां सघलां कार्यनी सिदि थ. हे राजन ! बदु मानथकी अथ्वा अज्ञानथकी जे कांमाहरो अपराध थयो होय ते दमा करजो. हे गजन : अमने तमारा सेवक जाणीने कोई वार पण संजारजो! अमने वणिकने कोण संनारे ? तो पण अमारे कहेवू नचित्त ने. कवि कह डे के जूस सतीनुं धीश्पणुं. आवां वचन सांजली राजा विचार करतो हव के धिक्क था ? ए स्त्री पातालसुंदरीज डे. वली विचारवा लाग्यो के पातालसुं दरी इहां क्याथी होय ? पूर्वे पण मुजने नर्म उपनो हतो तेम आ हम णा पण नर्म पडे . समशीर्षपणे विधात्रानी स्पीयें जागीय राजानो, शेतनो अने पातालसुंदरीनो एत्रणेनो सुखपाल बराबर चालते थके थोडीवा रमां समुश्कांते सहु परिवार संघाते आव्या. ते सार्थवाह राजाने नमीने पातालसुंदरी सहित मोटा वाहाणमां शीघ्रपणे बेगे. हवे कदाच पाबल थी आपणी शोध करवा माटे राजा आवशे एवी शंकायें पातालसुंदरीयें सार्थवाहने कर्यु के बीजे मार्गे वहाण चलावो. तिहां नयन, मन अने प वनना वेगनी पेरें तथा कनोलहणांतानी पेरें ते वाहण चालता हवा. हवे ते पातालसुंदरी, वाहाणमां महीना सुधी तो सार्थवाहनी सा थें आशक्त रही. त्यार पड़ी ते सार्थवाहनो नाबंध सुकंठ नामें यथार्थ
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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