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________________ अर्थदीपिका अर्थ तथा कथा सदित. १२ जे वल्कल चीरिय प्रमुख चरक पारिवाजकादिक अन्यदर्शनीयोना लिंगें सिह थया, ते अन्यलिंग सिम जाणवा. १३ जे मरुदेव्या माता अने पुण्याढ्य राजा आदिक गृहस्थलिंगें सिपथ या ते गृहस्थलिंग सिम जाणवा. एने इव्यथकीअन्यलिंग होय पण नावथ की दायिक सम्यक्त्व अने यथाख्यात चारित्रना परिणामें केवलज्ञान पामी यं तगड केवली थश्मोद पामे.कदामि आयु विशेष होय तो साधुलिंग पडिवले. १४ जे एक समयमा एकज जीव सिदि पामे तेने एकसिंह कत्रीये. १५ जे एक समयमां बे आदें देश्ने यावत् १०७ पर्यंत सिह थया ते अनेक सिम जाणवा. ए पन्नरनेदें सिम थया ते प्रत्ये वांदीने. _ तथा (धम्मायरिए के० ) धर्माचार्य एटले जे श्रुतधर्म अने चारित्रध मना आचार आचरवाने प्रवीण निपुण सम्यगधर्मना दातार केशी गण धरनी पेठे, नास्तिकमतना धारक पुरुषोने पण रंजन करी धर्म पमाडनारा एवा धर्माचार्य ॥ यमुक्तं ॥ जो जेण सुधम्ममि, गवि संजएण गिहिणा वा ॥ सो चेव तस्स जायर, धम्मगुरु धम्मदाणा॥१॥ अर्थः-(संज एण के०) संयती एटले साधु (गिहिणावा के०) अथवा गृहस्थ एटले श्रावक (जो के०) जेने (जेण के) जेणे (सुब्धम्ममिठावि के०) शुधर्मने विषे स्थाप्यो होय जोड्यो होय (सोचेव के) ते निश्चयें (त स्स के० ) तेनो धर्मगुरु धर्मनो दातार (जाय के०) होय ॥ १ ॥. तथा सूत्र अर्थना जाण समस्त लक्षणे लदित, गलना मेढीनूत, थंनरूप, गब नी सार संजालना करनार, अर्थना उपदेशक एवा श्राचार्य जाणवा. तथा च शब्दथकी सम्यग्ज्ञान संयमादिकें युक्त,आचार्यपदना स्थानकने योग्य श्रुतना नणनारं नणावनार एवा श्री उपाध्यायजी लेवा. __तथा (सवसादु के०) सर्वसाधुते याचार्य,उपाध्याय प्रवर्तक,स्थविर,गणा वोदकादिक अनेक ने करीने जूदा जूदा मुनिराज मोदना साधकजाणवा. तिहां नविष्यकालने विषेत्राचार्यपदनो अप्रतिबंधक वांडा रहित बे,सू त्र, नण, गण, नणावq करे, प्रतीक एटले श्सक डे,सूत्रवाचना दाने करी अनुग्रहवंत , पोतें तपने विषे संयम योग्यने विष योग्य जे, बीजाने पणतेमां प्रवावे , अगुनथी टव्या ने, गबना चिंतक डे, मार्गना र्तक , तेने प्रवर्तक कहियें.
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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