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________________ २६२- जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. विषेज तें तत्त्वकरीने ग्रहुं , अहो ! तारी दृढ प्रतिज्ञा सत्यवंती, अहो ! तुमने सत्यवंतमां सत्यवादिनी रेखा ने माटे राजानी पेरें तुजने पण मुकु ट जोयें,ते माटें तुजने शेगद पणानो पबंध हो. एम कही राजा अति शय प्रीतिने समूहें करीने शेठ पदवीनो मस्तकें पट्ट बंधावतो हवो. पापने धुंवाडे करीने श्याम थयेला एहवा विमलने राजायें कह्यु के रे उष्ट ! रे धीष्ट ! ताहरी जीन दवा योग्य ,पण तुं कमल शेठनो पुत्र ,ते माटे ढं तुमने मूकं . कमलना कांटा को उखेडी शके नहि. हवे सागर पण क मल शेठ उपर संतुष्ट थश्ने विमलना करियाणां हतां, ते लोन रूप मेज़ बांड्यो ,जेणे एवा कमल शेठने पापी दीधां. प्रत्यद सत्य वचननो प्रनाव कोक एवो उत्कृष्टो डे के जे थकी गयुं श्व्य पण पावं याव्यु ने वली निर्म ल कीर्ति पण विस्तार पामी तथा कमला जे लक्ष्मी ते पण विस्तार पामी. हवे कमल शेठने राजा कहेतो हवो के तमें महोटो पसाय कस्यो जे न्याय पाल्यो. सत्यवचन केहेवू ? तो के प्रत्यक्ष कल्पवृद सरि ने. एट ला माटें सत्यवचनथी झुं न संजवे ? सत्यवचन सर्व पंमित लोकने मान नीय . सत्यवचन बोलनारना वचनने सर्व लोक, मानवा योग्य थाय. सर्व लोकने विशेष प्रशंसवा योग्य थाय. अने जूतुं बोलनारो जे विमल ते सर्व लोकमां निंदनीय थयो. विमल सुश्रावकनो वेटो हतो पण जूढं बो व्याथी उर्गतियें गयो. हवे राजा सागरनी बुधियें करी रीज्यो थको,तेने सर्व प्रधानोमा मुख्य प्रधानपणे थाप्यो. अहो ! लोको एबुदिनुं फल जून कहे वु ! हवे कमलशेठ घणा कालसुधि गृहस्थनो धर्म पालीने अंते उत्तम साधुनो धर्म ग्रहण करी रूडी रीतें विशेषपणे नाषा समितियें युक्त थको क मल साधु मोक्ष प्रत्ये पामतो हवो. सकल कर्म क्ष्य करीने परम पद वस्यो. ए रीतें वखाणवा योग्य तथा रसें करी सहित एवं जे कमल शेउनु चरि त्र तेने सांजलीने हे पंमित लोको ! तमे धननी तृष्णा मूकी अकृतकरण त्यागी असत्य वचन बांकी नित्य उजमाल थइ धर्मने पादरीने परमपदने वरो ॥ उक्तंच ॥ चिरं चरित्ता गिहबधम्मं, सुसादुधम्मं गहिसेण सम्मं ॥ वि सेसनासा समि पनत्तो, जत्ताणुपत्तो कमलोगलोगं ॥१॥ श्वं पसबं कमल स्स सेती, सरस्स वित्तं निसुणित्तचित्तं ॥चिच्चा अ किच्चं विबुहा असचं, किच्चं व निचं पि सरेह धम्मं ॥२॥इति हितीय अणुव्रते कमलश्रेष्ठि कथा समाप्ता ॥
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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