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श्रीमोहविवेकनो रास.
नए ॥दोहा॥ ॥ श्याम शरीरी दूबलो, मींघो जोर अनंत ॥ लाल रंग लोचनधरु, त्रासे तेहथी संत ॥१॥ क्रोध जोध के एहवो, ते बोल्यो सुण स्वामि ॥ कु ण मुफ होड करे इहां, ते दाखे तसु नाम ॥ २ ॥ नयण वयण करी हो तबदु, धूजा बुं जोर ॥ नरक नुजंगें बद वसुं, थोडो बीजी ठोर ॥३॥ चंझनाव उर्वचनता, तामस वैर सराप ॥ ए मुफ सेवक शाश्वता, कुण सहे एहनो ताप ॥४॥ संन्यासी शिशुपाल नृप, कुरुड दीपायन जोय ॥ ब्रह्मदत्त आदें करी, बहु सेवक मुफ होय ॥ ५ ॥
॥ ढाल आगमी ॥ ॥ राजीमती राणी इणिपरें बोले ॥ ए देशी ॥ सुजो स्वामी अंतरजा मी, हवे अहंकार कहे शिर नामी ॥ सु० ॥ तीन नुवनमां वासो मेरो,मा नवमांहे देखो घणेरो ॥ सु० ॥१॥ विद्या झान तणो फल हारे,जे नर होवे माहरे सारे ॥ सु०॥ गुरुजननो पण माहरे लेखो, मयमत्त हाथीनी परें देखो ॥सु॥२॥ चक्रवर्ति आप तप चाख्यो,मेरो स्वरूप इणीपरें जाख्यो।सु० ॥ दूर विनीत मुफ नाव सदाइ, सेवक सेवे चित्त लगाइ ॥ सु० ॥ ३ ॥ च मर दानव ने प्रतिवासुदेवा,लाखे ज्ञानें करे मुझ सेवा ॥सु०॥ दंन कहे मु क वातां महोटी, अवसर नावे एह हथोटी ॥ सु० ॥ ४ ॥ पीणा सर्पत पी मुफ करणी, अंतरमां कातर अनुसरणी॥सु०॥ मीतुं बोलुं पाशमां पाडूं, सूक्ष्म बादर निगोद देखा९॥ सु० ॥ ५ ॥ जूटुं बोलु बल बल साधूं, वेश्या संघाती शेह आराधं ॥ सु० ॥ अंगारमर्दक आषाढनूता, कपट करा मुनि नारे जूता ॥ सु०॥ ६ ॥ महाबल वनिता गोत्र जे धरियो, पीठ म हापीठ तेहिज वरियो ॥ सु०॥ सेवक सखरा तिर्यंच मांहे,संसार फेलं जाली बांहे ॥ सु० ॥ ७॥ लोन बोल्यो हुँ महोटो वीरो,हुँ संसारें जाचो हीरो॥ सु० ॥ आदर मान दीये मुफ देवा, नरवर पन्नग सारे सेवा ॥ सु०॥॥ जल थल गिरिवर नूमि पराइ, ते अवगाडं दणमें जाइ ॥ सु० ॥ नूरख तृ षा तप शीत न जाएं,लालच ने मुख सब लोनाj ॥सु० ॥ ए॥ ममता आरंज मूळ महोटी, कृपण साहस ए सेवक कोटी॥ सु० ॥ सुनूम चकी अने नृपनंदा, लोननदय केशरी मुनिचंदा ॥ सु०॥ १० ॥ अंतर वाहिज सेवक जाजा, कोइ न लाने अमची माजा ॥ सु० ॥ हवे प्रमाद ते शूर