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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. सवाइ, राजा आगे बोल्यो धाई ॥ सु० ॥११॥ वंची पदवी कोइक चढियो, माहरी शक्ति तुरत ते पडियो ।। सु० ॥ चनदे पूर्वधरे के मुनीशा, उपशा न्तमोही जेह जोगीशा ॥ सु० ॥ १॥ तेह निगोदें जाये सीधा, प्रमादना संग जेणें लीधा ॥ सु० ॥ स्नान मऊन जलकेलि शिखा, नाटक चेटक बार देखा ॥ सु० ॥ १३ ॥ पासें खेलुं विकथा नाखू, परनी निंदा ते पण दा ॥ सु० ॥ वैर विरोधना वंश वधारूं, बालस उघ घणेरी धारुं ॥सु॥ १४ ॥ तेरे काठिया व्यसन जे साते, तिणसुं मेरे मिलती धाते ॥ सु० ॥ नट विट संगति विषया अंशा, अंतर सेवक मुफ अवतंसा ॥ सु० ॥१५॥ मंगू शैलक मरीच वदीतो,कुंमरीक सौदास में जीत्यो ॥सु॥ बाह्य सेवक इम केता दाखं, मुफ गुण निज मुख केता नांर्खा ॥ सु० ॥१६॥ धर्ममंदिर कहे प्रमाद घोरा, वीर विवेकशुं न चले जोरा ॥ सु० ॥
॥ दोहा ॥ ॥ इणिपरें सामंत बोलिया,यूरा पूरा साथ ॥ मोह शील हवे पाखस्यो, नावे केहने हाथ ॥ १॥ जूठी ने सत्यामृषा, उंद दमामा दीध ॥ हलका रे रण जीपवा, अमलकराए कीध ॥ २ ॥ गुजध्यान अपध्यान वे, आमा साहामा होय ॥ शुभाशु६ उपयोग असि,महिप वृषन यु६ जोय ॥ ३ ॥ अपध्यान नर बोलियो, करि पहिलो हथियार ॥ जोरावर मुफ शस्त्र , गसुं जीत अपार ॥ ४ ॥ रहनेमी नल राय बहु, चूकायां नर नार ॥ मु ऊ आगें तूं नां टके,नाश मूक हथियार ॥ ५ ॥ शुरुध्यान बोल्यो हवे, तुं महेलो मनमांहि ॥ शीख इसी शूरा कहे, तुं कायरनी बांहि ॥६॥ दृढ प्र हारी चिलातीयसुत, हत्याकारक जेह ॥ में तास्या एक पलकमें, बांह ग्रहीने तेह ॥ ७ ॥ बदुकालें तुं धावियो, सांकडे माहारे साथ ॥ हवे जीपीने मू करां, जो करशे जगनाथ ॥ ॥ इणिपरें वेदु कटकमां, सऊ थई तिण वार ॥ निज निज बल परकाशता, वदे ते वारो वार ॥ ए॥
॥ढाल नवमी॥ ॥ तुंगिया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥ ब्रूजनो हवे जूज सुणजो, न विक जन मन लाय रे ॥ अवर जूफे नरक जयें, एहथी शिव थाय रे ॥ ॥ १॥ मिथ्यात्व तेहिज राति बदुली, ज्ञान जानु प्रकाश रे ॥ तिण समे मांहो मांहि अडिया, नीडिया धरिय उनास रे॥॥ ॥॥ जोध