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GG जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. धु कुमर अने गर्दनिन्न राय रे लाल ॥ नाम ले केता गणुं, सेवक बाहि ज कहेवाय रे लाल ॥ म० ॥ ५ ॥ फूल वसंत अंबुद घटा, कोकशास्त्र शृं गार संजोग रे लाल ॥ स्नान अने मद पान ते, मुफ अंतर सेवक जोग रे लाल ॥म० ॥ ६ ॥ राग वदे हवे सांनलो, ढुं जतन करुं रागंध रे ला ल ॥ मयण तणो पण मित्र बुं, जोडं दुं सघली संध रे लाल ॥ म ॥७॥ किहां किहां यांख , किहां चं५ अ किहां मुख मुह रे लाल ॥ पर वाला किहां अधर , ए उपमा राग निरु रे लाल ॥ म० ॥॥ किहां हीरा किहां दशन , किहां कनककलश मांसग्रंथ रे लाल ॥ किहां वापी किहां नानि , पण रागवशे ए संथ रे लाल ॥ म ॥ ए॥ सडण पडण विध्वंस बे, अंग अशुजतणो नंमार रे लाल ॥ ते देखाडी नोलवं, जोराव र राग अपार रे लाल ॥ म॥ १० ॥ मीठा मन्मथ बोलडा, मिलवो नि लवो बहु प्रेम रे लाल ॥ अंतर सेवक डे बदु, माहरे जोरावर एम रेला ल ॥ म० ॥११॥ इन्डुपेण विन्छुपेण जे, चिलाती चोर इलापुत्र रेलाल॥ बाहिज सेवक माहरा, पहेलाथी महारा मित्र रे लाल ॥ म ॥ १२ ॥ प वदे हवे सांजलो, ढुं करडो शूरो तुज रे लाल ॥ कुण अडे जगमें तिको, जे करशे मुफझुं जुऊ रे लाल ॥ म० ॥ १३ ॥ चम रुक्ष बिनत्समां, दर्शन अति जयनो हेत रे लाल ॥ सन्मुख कुण जोई शके, रिपु जिपुंउने खेत रे लाल ॥ म० ॥ १४ ॥ मत्सर निंदा पिशुनता, संग्राम शराप ने मर्म रेला ल॥ आक्रोशन अति चमता, अंतरसेवक धर्म रे लाल ॥ म० ॥ १५॥ कौरव ने चमकोशियो, पालक ने संगदेव रे लाल ॥ कमतादिक बहुप्राणि या, साचवे माहरी सेव रे लाल ॥ म० ॥ १६॥ हवे मिथ्यामंत्री बोलि यो. सुण मारी शक्ति अनंत रे लाल ॥ तीन नुवनमां प्राणिया, मुक सा निध्यथी नामंत रे लाल ॥ म० ॥ १७ ॥ जाति योनि कुल कोडी ए, नहिं कोइ ले ते नाम रे लाल ॥ सेवक वीर विवेकना, बहु काली पीच्या आम रेलाल ॥ म० ॥ १७ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मने, वश पड्यां प्राणी जेम रे लाल ॥ अंतरंग मुफ कामना, किंकर सघलाये तेह रे लाल ॥ म० ॥१॥ मति विपरीत तणा धणी, पालक कपिलादिक तेम रे लाल ॥ बाहिज सेव क बदु अडे, पार नावे गणतां एम रे लाल ॥ म० ॥ २० ॥