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श्रीमोदविवेकनो रास. र ढुं पाखं ॥ अरि मुख कालुं पहेली अणिये, टेक नली परें राखुं ॥ नं० ॥२॥ चक्रतणी परें नव नव फेरे, नूर नविकने जेह ॥ विपरित नाव अ नाव वडो अरि, हुं वश करशुं तेह ॥ नं ॥३॥ शमरस रस यादि क रीने महारा, अंतर सेवक ताजा ॥ करकंकू आदिक देईने, बाहिज सेवक साजा ॥ नं० ॥ ४ ॥ पंचम गुण गणकनी धरती, देश विरति जयदाई॥ देशे नंगी पूरव कोडी, मान्य कहुँ मन लाइ ॥ नं॥५॥ धर्म ध्यान म ध्यम त्यां जाणो, प्रतिमा श्रावक केरी॥ खट आवश्यक किरिया कीजें,व्रत लघु गु६ विहारी ॥ नं ॥ ६॥ सडशठ प्रकृतितणो तिहां बांधी, मोहत यो मद गाठू ॥ अप्रत्याख्यानतणो दय कीधो, वैरकदमी वाचु ॥नं॥ ७॥ आनंद ने कामदेव कहीजें, ते मुफ सेवक सारो ॥ खट आवश्यक पु रोहित केरो, ए रणखेत विचारो ॥ नं० ॥ ७ ॥ हवे संवेग ने निर्वेद वेत, लघु सुत नोला शूरा ॥ मोह महिपतिनुं दल मोडं, नुजबली नीम स नूरा ॥ नं० ॥ ॥ बहो सत्तम गुणगाण धरती,ते रण खेत बुहास्यो॥ अन्तर मुहूर्त स्थिति मति बेहु, चढी उतार निहास्यो ॥ नं ॥१॥ त्रेसठ प्रकृति प्रमत्तें बांधे, सत्तर अहवन्ना ॥ मोहतणुं बल पल पल बीजे, सद् वदे धनधन्ना ॥नं०॥११॥ निरालंब धर्म ध्यान विशुमा,तेहिज अंतर वेली॥ पां चे पांव बाहिज सेवक, काढे मोहने तेली ॥ नं० ॥१२॥ अप्रमत्त गुण ठाणथी करसुं, अपूर्वध्यान विचारी॥ गुणश्रेणीयें गुण निज संक्रम,क्रिया दूर निवारी ॥ नं ॥ १३ ॥ सत्तम अंतें गुक्त ध्याना, सामो यावे यूरो॥ मोह महीपतिनुं बल बूटे, अनुनव होय सनूरो॥ नं०॥१४॥ इणि परें पुत्रं फोजां जाल्या, हवे समकित मंत्री बोले ॥ नवजल तारण पोत प्रवी गो, कुण आवे मुफ तोलें ॥ नं ॥ १५ ॥ ए संसार आदि अपारा, मि थ्यानूषण नारी॥ त्यां नविजनने हाथ ग्रहीने, हुँ ऊतारूं पारी ॥ना ॥१६॥ देव गुरु धर्म तत्त्व देखावं, नाजुं कर्म विकारा॥श्रा करुणाया त्मक माहरा, अंतर सेवक सारा ॥ नं ॥ १७ ॥ बाहिज सेवक श्रेणिक केशव, इत्यादिक बहु लहिजें॥दायिक नाव खजीनो पामी, विरति क्रिया न वहीजें ॥नं० ॥ १७ ॥ तेत्रीश सागर किंचित्यधिको, मान कहीजें एही॥ चोथे गुणगणे बदु लाने, धर्मरागी गुण गेही ॥ नं ॥ १५ ॥ प्रकति सत्त्योत्तेर चोथे बांधे, जूमी प्रकृति निवारे ॥ धर्म ध्यान मंदो सदु दीसे,