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G६ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. भारत रोइ विचारे ॥नं ॥ २० ॥ मोहतणो मंत्री मिथ्याग, ते ढुं जीपन जोरें ॥ मोहतगुं दल मुडशे तबही, देखाडे निज तोरें॥॥१॥ इणिपरें समकित मंत्री आख्यो, नुज बल कीध प्रकाशा ॥ धर्ममंदिर कहे अधिको कीयो, वीर विवेक ननासा ।। नं० ॥२२॥
॥दोहा॥ ॥ नपशम शूरो बोलियो, सुण स्वामी मुफ वाण ॥ श्रेणिसुथिर रण आठमो, गुणगाणे गुण खाण ॥१॥ आलस निश नय सकल, दूर निवारूं संग ॥ क्रोध जोधने जीप', नव गुणगणे रंग ॥२॥ क्रोध दावानल क्रूर , संताप्यो संसार ॥ हुँ सघलाने सुखकरूं, निज गुण अमृत धार ॥ ३ ॥ शत्रु मित्र सम नावने, अन्तर मुफ परिवार ॥ सागरचंद नाग दत्त बडु, बाहिज सेवक सार ॥ ४ ॥
॥ ढाल बही॥ ॥ वेडले नार घणो ने राज, वातां केम करो बो॥ ए देशी ॥ नवमे गुणठाणे वली ऊना, शूरा पूरा सारा ॥ मोहतगो हवे मद नतारूं, शुक्त ध्यान हथियारा ॥ महोटो मार्दव शूर सुजाण, अरज करे कर जोडी ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ गाढो अनमी मान जे वैरी, जीपीश हूं रिपु तेहो ॥ प्राणायाम ते अंतर सेवक, अति बल मन वच देहो ॥ म०॥ २ ॥ बा दुबली गणधर जूता, ए मुफ बाहिर शूरा ॥ अहंकार बोडीने दीधो, अनुनव लीध सनूरा ॥म ॥३॥ आर्जव सामंत तिहां किणे बोल्यो. माया जीपणहारो ॥ शरणस्वरूपी शान्ति शिरोमणि, अंतरंग परिवारो ॥ म॥४॥ राजा पूब्यो तेणे प्रकाश्यो, माया वचन अबोला ॥ दुन क कुंवर प्रमुख मुज बाहिज, सेवक राख अमोला ॥ म० ॥ ५ ॥ मोहत यो जे महोटो सेवक, दंन कहीजें दरियो॥ ते पण दुं नवमे गुणठाणे, जीपण बीडो धरियो । म ॥ ६ ॥ संतोष महोटो सामंत कहीजें, ते हवे बोले एमो ॥ तृष्णा तरल तरंगिणी तरयु, धरशुं धृति रति देमो । म० ॥ ७ ॥ परम समाधि तणो अंकूरो, ते मुफ वहालो जोधो ॥ कपि लादिक मुफ सेवक सारा, त्यागी अंतर सोधो ॥ म ॥ ७ ॥ दशम गुणा ण गम लहीने, सूक्ष्म लोनने जीती॥ संपरायकी कीरिया सघली, तब थें होय वितीति ॥ म० ॥ ए ॥ उहाह सेनानी तिहांकणे बोल्यो, सुण