________________
G४ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. नम्यो जी,बलन मोह करी वीर ॥वी॥१२॥ क्रोधथी कंस चूक्यो सही जी, मान उर्योधन देख ॥ दंन उदायन नृप मारियो जी, लोन संनूम विशेष ॥ वी० ॥ १३ ॥ कंमरिक प्रमादें पाडियो जी, चंप्रद्योतन काम ॥ राग थी ब्रह्मदत्त दुःख लह्यां जी, क्षेषथी कोणिक आम ॥ वी० ॥१४॥ व्यस नथी कीचक चूकियो जी, कपिल मिथ्यात्वथी जेम ॥ पारवंम संग कुसंग थी जी, बहु नर चूकिया एम ॥ वी०॥ १५ ॥ जगत जन पीडिया बदु परें जी, मोह निःकारण शत्रु ॥ तेह अन्याय हुं केम सर्दु जी, थें सुणो महा रा मित्र ॥ वी० ॥ १६ ॥ माहरे सेवकें को कर्दे जी, आचस्यो होय अन्या य ॥ तेहy नाम लेइ दाखवो जी,शीख देवं सुखदाय ॥ वी० ॥ १७ ॥ध मथी जय दुवे जगतमें जी, पापथी क्य कहेवाय ॥ एह बेदु वातां अ जी, आदरो मन तणी दाय ॥ वी० ॥ १७ ॥ जिम जिम खुद खमे एहना जी, वली कीयां वचन प्रमाण ॥ तेम तेम ए शिर चढि गयो जी, शीख देकं अनिराम ॥ वी० ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ एह वचन सुणि वीरनां, संधिपाल गया धाम ॥ हवे श्री वीर विवेक नृप, योहाने कहे ग्राम ॥ ॥ शूरा पूरा सांजलो, आयो ले रण एह॥ हाथ तमारा देखस्यां, अरि दल कादिम एह ॥ २ ॥ साथी हाथी दो तमें, अरिदल एह करीर ॥ जयलक्ष्मी वरस्यां हवे, जो करशो थें नीर ॥ ३ ॥ हार मुकुट केयूरें करी, शोना शूरा नांहि ॥ रिपु सन्मुख घायें करी, यश पसरे जगमांहि ॥ ४ ॥ असि धारा तीरथ अजे, देवतणी गति देय ॥ निज नुज बल संजारिनें,साम धर्म धरि धेय ॥५॥ अंगज अंग ने अंगना,राज का ज जीव प्राण ॥ त्यांलगी सघला वनहा, ज्यां न मिले अरि बाण ॥६॥ वाहन कवचे शस्त्र नरि,वहे याम्बर एम ॥ अंतरंग साहस विना, जय प द प्राप्ति केम ॥ ७ ॥ बोलो कुण क्यां थोनशे, निज निज ले परिवार ॥ कोण कोण केहने जीपशे तब बोल्यो सुत सार ॥ ७ ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ राग सोरत ॥ सेवा बाहिरो कहियें को सेवक ॥ए देशी ॥ नंदन नव वैराग वदे तब, विनयवंत वरदाय ॥ साहिब आगे निज गुण वर्णन, कही किण कीधो जाई ॥ नं० ॥१॥ पण साहिब जे पूर्वी वाणी, तसु उत्त