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श्रीमोदविवेकनो रास. जणी ते सेंती कीसी हो, खस खूटणनी वात ॥ फिरजावो निज घर जणी हो, अम मन एह सुहात ॥रा॥१५॥
॥दोहा॥ ॥ म कहीने चूप करि रह्या, संधिपाल तिणवार ॥ हसी करी वीर व दे तिहां, वाह वाह मतिसार ॥ १ ॥ मोहतको महिमा कही, जाण्यां व चन विशाल ॥ क्युं कर बानो होयशे, मा आगे मोशाल ॥ २ ॥ में जा एयो प्रीब्यो बजे, बल बल एहनुं दीठ ॥ व्याघ्रमुखें ए शियाल , तुमने लागे मीठ ॥३॥
॥ ढाल चोथी ॥ ॥ वीर वखाणी राणी चेलणा जी ॥ ए देशी ॥ वीर विवेक वलतोक हे जी,सांनलो थे संधिपाल ।। वीच करो नल माणसां जी,गुण कह्या या लपंपाल ॥ वी० ॥ १ ॥ मेह वहालो सहुने दुवे जी, हंसने न्याय सुहा य॥ पंख करे दिन तम करे जी, श्याम कब उज्ज्वल थाय ॥ वी० ॥२॥ मानसवाही हंस ने जी, उज्ज्वल मोति थाहार ॥ पंख वेदु धवली करे जी, दूध पाणी करे सार ॥ वी० ॥३॥ कटक घणुं तसु आरिखयुं जी, नुं गर तूस सम तेह ॥ त्यां लगी धूली नमे घणी जी, ज्यां लगी वूठो न मेह ॥वी०॥४॥ लोह सम ते जगमें घणा जी, हेम ते अल्प तुं जोय ॥चं दन वन वन नवि दुवे जी, गज गज मोती न कोय ॥ वी० ॥ ५॥ तिमि रतणी परें ते घणा जी,सूरज एकज थाय ॥अंकुश केवडो गज किहां जी, शंकुनी वात ठहराय ॥ वी० ॥६॥रंकनां वृंद श्यां कामनां जी, एकज श्रीमंत सार ॥ सिंह एको बदु त्रास जी, शियालनी कांइ नहिं कार ॥ वी०॥ ७ ॥ अमर थे एहने आखियो जी, देखश्यां ते हवे आज । कस वटी आपथी आखशे जी, जूठी ए शरदनी गाज ॥ वी० ॥ ७ ॥ बाह्य सु ख देखिने राचिया जी, एहना सेवक नूर ॥ अन्तर सुख नवि अनुजव्यो जी, आतम अनुनव नूर ॥ वी०॥ ए॥ लोग संयोग जे ए दिये जी,तिहां पण महारुं सुख ॥ एहथी निःकेवल नरक ने जी, घोर अति जोर दे दुःख ॥ वी० ॥ १०॥ नव जल तारण एकला जी, कुटुंबनुं त्यां नहिं काम ॥ राग करी मोहिया मोहगुंजी, जाणियुं नहिं निज धाम ॥वी० ॥११॥ था हरो वांक इहां को नहिं जी,वड वडा नोलव्या धीर ॥ कृष्ण कलेवर ले