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जैनकथा रत्नकोप नाग त्रीजो.
साहिब म वीनति हो, मन देइने खाज ॥ सेवक में नहिं केहनो हो, साधुं अवसर काज ॥ रायजादा वीरा हो, थें राजन बो रढीयाल ॥ रा० ॥ १ ॥ एकली ॥ हित वाली बेमतली हो, हृदय कमल सुविचार ॥ तुं प्रभु याहु सही हो, नाग्यत अनुसार ॥ रा० ॥ २ ॥ पण ए मोह नृप यावियो हो, जूनो राजा तेह || अवगणियें क्युं एहने हो, अनंत युगारो जेह ॥ ० ॥ ३ ॥ कटक विकट सबलो घणो हो, वली पूरो परिवार ॥ वड शाखा ज्युं विष नयो हो, व्यापि रह्यो संसार ॥ रा० ॥ ४ ॥ को ट खजीनो कां नहीं हो, ज्युं मानस नोज ॥ सकल क्रिया में सुंदरु हो, कु जे इरो खोज ॥ रा० ॥ ५ ॥ इन्ड् चन्द्र नागेन्ड् जे हो, माने ए हनी प्राण ॥ अवर न को एहवो अबे हो, इयुं साधे बाग ॥ रा० ॥ ६ ॥ जो थें मोह न मानियो हो, एने दोष न कोय ॥ हंस जणी वहा लो नहिं हो, मेह क्युं नूंमो होय ॥ रा० ॥ ७ ॥ बहु जनने जे वालहो हो, तिj क्युं रीसाय ॥ अन्न अधिक प्यारो सहु हो, अंत समे न सु हाय ॥ ० ॥ ८ ॥ पग पग देखूं एहनो हो, लश्कर लांगर जोर ॥ मोह सेना सागर जिसी हो, तुम दल एको कोर ॥ रा० ॥ ए ॥ तीन वन मां ए हो, तुं इक नरमें होय ॥ ते पण खारजमां वसे हो, तिहां पण जविजीव कोय ॥ रा० ॥ १० ॥ तिहां पण गुन मतिमां वसे हो, वली रुचि शुद्ध प्रतीत ॥ ते लोकोनो राजियो हो, तुं बे लोकातीत ॥ रा० ॥ ११ ॥ ताह सेना पण सदु हो, तेहने मिलशे जाय ॥ ते मुख वि रोयोनो हो, अर्क तूल करे न्याय ॥ रा० १२ ॥ कुण न सेवे तेहने हो, नव्य नव्य पार || कोइक विरलो थोनशे हो, तुम वेला निरधा र ॥ ० ॥ १३ ॥ तुं हमणां वाध्यो अबे हो, घटतां नहिं बे वार ॥3 अनादि वाध्यो रहे हो, अमर कीधो अवतार ॥ रा० ॥ १४ ॥ तुं सेवक ने सुख दिये हो, प्रखय गोचर जेह || इन्डियने सुख दिये हो, मुख मी बे तेह ॥ ० ॥ १५ ॥ तुं सेवकने दाखवे हो, गिरि कंदर वन वा स ॥ उयापे सेवक जणी हो, मंदिर नारी विलास ॥ रा० ॥ १६ ॥ तुं परिवारने बोडवे हो, एकाकी ठहराय ॥ उ मेजे पुत्र मित्रने हो, लोकोने मन नाव ॥रा० ॥ १७ ॥ बूढा सेवक ताहरा हो, जूना जर्जर तेह || रण तरुण तीखा घयूं हो, तसु सेवक सुसनेह ॥ रा० ॥ १८ ॥ तेह