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श्रीमोदविवेकनो रास. वांकी अति तीखी हो ॥ मति अज्ञान नाथडा नया,बाणावलि शीखी हो ॥ रा० ॥ ५॥ ताप स्वनाव ते टोपले, तर्जन अति लीधी हो ॥ मद सन्नाह ते पहेरियं, जिनशाली कीधी हो ॥ रा० ॥ ६ ॥ मिथ्यावाद वा जित्र घणां, वाजे तिण वेला हो ॥ वज थइ शूरा सदु,तब दूया नेला हो ॥ रा०॥ ७ ॥ नारी कर्मतणो उदे, मुहूर्त तिहां साध्यो हो॥ नीच संग गज पर चढी, जाणे जय वाध्यो हो ॥रा ॥ ७ ॥ पाप विकार प्यादा घणा,मुख आगे कीधा हो॥आर्त ध्यान बंधूक लेई, हवे वंबित सीधां हो। रा० ॥ ए ॥ पाप मनोरथ रथ जला, सजिया रण सारु हो॥ काम विका र तुरंगमां, वायु वेग ज्युं वारु हो ॥ रा० ॥१०॥ अति अनिमान ते हाथि या, पर्वत सम दीसे हो ॥ मेघतणी परें गाजता, मोह देखी हीसे हो॥ रा० ॥ ११ ॥ प्रमाद सेनानी कियो, आप मोहें मान्यो हो ॥ चतुरंग सेनायें परवयो, अब नायक जाण्यो हो ॥रा ॥१२॥ नरपति तेडीने कहे, होजे हवे शूरो हो ॥ तें श्रुतज्ञानी पाडिया, परतो तुज पूरी हो ॥ रा० ॥१३॥ मेरुथकी दक्षिण दिशे, प्रायें परमादो हो ॥ बांध्यो मोहप्रसादथी, अधि को उन्मादो हो । रा॥ १४ ॥
॥दोहा॥ ॥णपरें जोरो मोहनो, सुणियो वीर विवेक ॥ सऊ दुवे शक ताना, जूझणनी धरि टेक ॥ १॥ दृग्गोचर दल मोहना, इक दिन मलियां आ य ॥ पर दल दरियावेल ज्युं, कायरने मन थाय ॥ २ ॥ यानंद अधि को शूर मन, जाणे आज विवाह ॥ आरण नेलणरो करे, मनमांहे न त्साह ॥ ३ ॥ जबके दामिनीनी परें, कूदावे हथियार ॥ उन्नमिया थाषाढ ज्यु, घोरघटा जलधार ॥ ४॥ समरावे रणनूमिका, विषम विदारे दूर ॥ वी र विवेकतणो नलो, राजनीति अंकूर ॥ ५॥ हवे मनमंत्री पण तिहां,
आवे सुतने प्रेम ॥ क्षण विवेक क्षण मोहा, जाय मले जे एम ॥ ६ ॥ तिहां जाये तब तेहनो, जय वं मन एह ॥ इण अवसर विच थावि या, संधिपाल सुसनेह ॥७॥ इहां के अध्यवसाय ते, संधिपाल सुखदाय॥ पहेली वीर विवेकने, अरज करे मन लाय ॥ ॥
॥ढाल त्रीजी॥ ॥ उठ कलालणी जर घडो हे, नयणे नींद निवार ॥ ए देशी ॥ सुण