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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो.
हवे, पान धरें वे एह || मिंरुकनी परें सोर करे रह्यो, अल्प लहीनें मेह ॥ मो० ॥ ४ ॥ वरसालाना ज्युं वहे वायरा, योबाना ज्यं नेह ॥ एहनी पण ले पर संपदा, ऊटक दिखाडे बेह ॥ मो० ॥ ५ ॥ याज न कोइ तुक जोडें खडे, सुरपति नरपति जोय ॥ संसारी प्रभुता पूरी नही, तुऊ सम तुंहीज होय ॥ मो० ॥ ६ ॥ हेला खेलामां जग जीपीयो, तुं गिरुन गंजीर ॥ नहाना थें युद्ध करो नहिं, सरिखा सरिखी जीर ||मो० ॥ ७ ॥ ज न काय घरी एहने, फरियो देश विदेश | अरिहंत नृप सेवाथी इले लह्यो, ऋद्धितो लवलेश ॥ मो० ॥ ८ ॥ एहनी चिन्ता मनमां मत धरो, मत व्यो एहनुं नाम ॥ चणक नबलियो नावि न जांजशे, लोक कखाणो श्राम || मो० ॥ ए ॥ इम सुपी मोह महिपति बोलियो, मलकीने मन मांही ॥ हाथ न देख्या बे तें एहना, तो वडो मद कांही ॥ मो० ॥ १० ॥
गणना एहवी नवि कीजियें, ए कंमा असराल || वैरी व्याधि न नहा ना जालिये, दुःख सरोवरनी पाल || मो० ॥ ११ ॥ मोह नहीं के एह नहिं दुवे, वेदुमां एक वात ॥ यवसर खाव्यां टालो किम दुवे, ताप मुखें गजे धात || मो० ॥ १२॥ युद्ध करया पण दत्री धर्म नवि रहे, न धरूं ममता एह ॥ धर्ममंदिर कहे मोह महा बली, हुकम कीयो सुणो तेह || मो० ॥ १३॥ ॥ दोहा ॥
॥ पाखंमी सेवक जली, कहेवे बे वड वीर ॥ मिथ्यावाली मेरी ए, व जडावो धरि धीर ॥ १ ॥ नेरी शब्द सुली करी, सऊ हुखा नट वृंद ॥ ज य लक्ष्मी वरवा नली, मन खाणे खानंद ॥ २ ॥ मन्मथ सुत यादें करी, वड वड वीर नरिंद॥ सकाइ सबली करे, नांजण अरिदल फन्द || ३ | ॥ ढाल बीजी ॥
॥ राग मारु अथवा कूपन देव मोरा हो ।ए देशी ॥ अभिमानी हो राजा अभिमानी हो || मोह महिपति कोपियो, मनमां रूप ध्यानी हो ॥ राजा निमानी || हो० ॥ १ ॥ जडता नारी तिले समे, श्रृंगार बणावे हो ॥ मांगलि क मुख च्चरे, घ तिलक करावे हो ॥ रा० ॥ २ ॥ हिंसा हरिणाही म ली, जय मंगल गावे हो । बाल गोपाल सदु नणे, मोह चढते दावे हो ॥ रा० ॥ ३ ॥ पाप शास्त्र जट बोलियो, बिरुदावली नीकी हो ॥ विवेक वीर नी होय जो, सेना सब फीकी हो ॥ रा० ॥ ४॥ अनरथ दंम कबाण लेई,