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श्रीमोदविवेकनो रास. मन्मथ उसस्यो एम हियो ॥ हां ॥ ११॥ अनुक्रमें आयो अविद्या नग री, तिहां किणे मेरो श्रावी दीयो । हां ॥ मोहरायने दीध वधाइ, सुत आयो यशपुंज लियो ॥ हां ॥१२॥
॥दोहा॥ ॥ मोहराय मन हरखियो, आयो पुत्र प्रधान ॥ गुरु लघु रीत न का करी, साहमो जाय सुजाण ॥१॥ मन्मथ तातनणी तिहां, तुरत कीयो परणाम ॥ सुत सखरा ते सलहिये, विनयवंत अनिराम ॥ २ ॥ मन वच काया प्रेम धरी, मलिया मनने रंग ॥ शीतल चंदन चंद ज्युं, सुख दायी सुत संग ॥ ३ ॥
॥ ढाल तेरमी॥ ॥ देशी काब्बानी ॥ अथवा ॥ वाग्यां जांगी ढोल, हे सखी वागा जां गी ढोल ॥ ए देशी ॥ वाग्यां गुहिर निशान,हे सखी वाग्यां गहिर निशान,
आयो लायक नंदन मोहरो ॥ हरख्यो सब परिवार ॥ हे सखी॥ह ॥ निजकुल शेखर दीपे सेहरो॥ ॥ वंचाणा वचननिनाद ॥ हे० ॥ वं०॥ तिणे करी अंबर अधिको गाजीयो ॥ पुरजन करे उबरंग ॥ हे० ॥ पु०॥ धन धन मोह महिपति राजियो ॥२॥ नव नव पाप विकार ॥हेगान॥ नटुथा नाचे राचे जन मना ॥ हाव नाव सुखकार ॥ हे० ॥हा॥ मंगल गावे तिहांबदुला जना ॥३॥ पूर्ण कलश परधान ॥हेापू॥ शृंगार पाणि करीने अति नयो ॥ मलपति सोहव नार हे०म०॥ साहमी आवी मं गल जय कस्यो ॥४॥आश्रव गोख विशाल ॥ हे॥ आ॥ तसुपर बेग नर नारी घणां ॥ नृपसुत नयण निहाल ॥ हे० ॥ नृ०॥ बोले ए सुत ते हने शीमणा ॥ ५ ॥ पुर पेसारो कीध ॥ हे० ॥ पु० ॥ मोहोलें यायो म न्मथ मानगुं ॥ मायादिक परिवार ॥ हे० ॥ मा० ॥ हरख्यो निरखी सुत मुख वानगुं॥ ६ ॥ युगवर श्रीजिनचंद ॥ हे०॥ यु० ॥ तास प्रसाद लही करी में कीयो ॥ चोथो खंग रसाल ॥ हे० ॥ चो० ॥ जणतां गणतां हीसे मुफ हीयो ॥ ७ ॥ पावक प्रवर प्रसि ॥ हे० ॥ पा० ॥ दयाकुशल गणी गुरुप्रसादथी॥ धर्ममंदिर कहे एम ॥ हे॥१०॥ अर्थ सह्यो ए में आगम थी॥७॥ कर्म विचित्र कहाय ॥ हे ॥ क० ॥ तेह तणो ए विवरो आ खियो ॥ नविजनने सुखकार ॥ हे०॥०॥ जिनवर वचन सुधारस