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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. दाखियो ए॥ इतिश्री प्रबोधचिंतामणौ ढालनाषाबंधे मोहचरप्रेषण कंदर्प दर्पदिग्विजयवर्णननामा चतुर्थः खमः संपूर्णः ॥ ४ ॥
॥अथ पंचम खंमस्य प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ श्रीशंखेश्वर सुखकरु, प्रणमूं पारस नाथ ॥ नाम लियंतां जेहनु,आ वे अविचल आथ ॥ १ ॥ण अवसर मन्मथतणी, कीरति नाट करे॥ नव नव बंद स्वबंदथें, वाणी रचना धरे ॥ २ ॥ जय जय जगने वनहो, जीव जीव चिरंजीव ॥ मोहराय नंदन निपुण, नव सुख माण सदीव ॥ ३॥ तुं शूरा शिरसेहरो, तुं वीरें विख्यात । कुसुम शरें जीत्यो जगत, कोण कहीजें वात ॥ ४ ॥ ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा, इन्श चन्द नागेन् ॥ नूर सूर गुरु गरुड पंखि, जोगि जति नरवृन्द ॥५॥ तें जगमें जीत्या घणा, आण मनाई जोर ॥ काम पदारथ शिखव्यो, धर्म अर्थ शिवगोर ॥ ६ ॥ विषयत णां सुख तुं लहे, मात तात सुखकार ॥ इम आशीप सुणी करी, दीg दान अपार ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली॥ ॥दर जीव दमा गुण आदर ॥ ए देशी ॥ मात पिता नगिनी ने नाइ, पूजे मयणने एम जी ॥ जग जीपणनी बात कहीजें, बल बुदि कीधी जेम जी॥ मा० ॥ १ ॥ मन्मथ मांमि कहीजे आगें, जीपणनी सदु वातजी ॥ नाठो वीर विवेक विख्यातो, सनिलिया अवदात जी ॥ मा० ॥२॥ माता मन हरव्यु यति गाढं, वखाणे वारंवार जी॥ तुं चिरंजीवे वंश वि नूषण, धन धन तुफ अवतार जी॥ मा॥३॥ बेटा बदुला होशे जगमां, पण तुज जोड न कोय जी ॥ तारा बदु आकाशें दीसे, चन्इ समान न होय जी ॥ मा० ॥ ॥ नयन अमारा चपल चकोरा, तुफ मुख चन्द समान जी ॥ किण दिन सुत आवीने मलशे, दूतो ए मुफ ध्यान जी॥ मा० ॥५॥ आज मनोरथ सघला दूधा, सुरुतरु फलियो आज जी॥ चातक मोर तणीपरें हरख्यो, तुफ दर्शन घनगाज जी॥ मा० ॥६॥ रति रंगीली तारी नारी, वसंत तारो मित्त जी ॥ स्नेह धरीने दिन दिन जोतां, मारग तारो नित जी ॥ मा० ॥ ७॥ रंगरलीगं सघला मलिया, दू