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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. शाली दाल घृत घोल ते, नारी चाहे नित्त ॥ स०॥ इहां निदायें जीमवो, देख घणो इहां मित्त ॥ स० ॥ म ॥ ७ ॥ मंझन चंदन मागशे, वस्त्र घ गां पटकूल ॥ स ॥ चर्म बिजावण ए अने, नारी जणी प्रतिकूल ॥स॥ म०॥ ॥ हास्य वयण मुख धारती, त्रिवनी रंग तरंग ॥ स० ॥ नारी नहिं ज्युं जाणियें, बूडे जे करे संग ॥ स ॥ म ॥ ए ॥ लोचन सहस्त्र तणो धगी, खबर न लाने काय ॥स० ॥ नारी निशा अंधकारमां, अव रने केम कहाय ॥ स ॥ म ॥ १० ॥ मन परिणाम ते वानरी, काम किरात करूर ॥ स० ॥ अजगर हास्य विलास ने, नारी अटवीनूर ॥स० ॥म० ॥११॥ नारीथकी हुँ बीहतो, पर्वत बेठो आय ॥ स ॥ तपसी जोगी जाणीने, मूक तुं मननी दाय ॥ स० ॥ म० ॥१२॥ मदन कहे नी लकंठने, केड न मूकुं कोय ॥ स० ॥ परण तुं पारवती नणी, शीलवंती ए होय ॥ स० ॥ म० ॥ १३ ॥ मदनवशे माहादेवजी, गोपी परण्या नार ॥ स० ॥ निदा तो नावे नहिं, सांजलजे जरतार ॥ स० ॥ म० ॥१४॥ निदा सखरी निकुने, गेहीने न सुहाय ॥ स० ॥धान्य घj घरमां दुवे, ते कहुँ तुऊ नपाय ॥ स०॥ म० ॥ १५॥
॥दोहा॥ ॥ गौरी कहे माहादेवजी, जाट कमनी पास ॥ देवनूमि ते आपशे, बीज धनद परकाश ॥ १ ॥ हल तो हलधर थापशे, यमघर महिष सुचं ग ॥ वृषन एक तुमने अडे, खेती कर मन रंग ॥ २॥ नातुं हुं लावीश नखं, श्म चलशे घरवास ॥ पण निदा नहिं जीमा, इम कीधो उपहा स ॥ ३ ॥ काम विटंबन बहु करी, नव नव कर्म विकार ॥ कहेतां अंत न पामियें, श्म जाणे किरतार ॥ ४ ॥ पाराशर जमदग्नि वली, चूकाया शणे काम ॥ तीन नुवन जीत्या इणे, फिरि फिरि सघले गम ॥ ५॥ पुण्य रंगपाटणनी दिशे, चाल्यो मदन कुमार ॥ तिण वेला ते नगरमां, प्रगट्यो ए आचार ॥ ६ ॥
॥ ढाल अग्यारमी॥ ॥ कोयलो पर्वत धुंधलो रे लोल ॥ ए देशी ॥ कर जोडी करे विनति रे लोल, मंत्री विवेकने एम रे ॥ राजेसर ॥ पुण्यरंगपाटणमां दुवे रे लोल, नुत्पात सघला केम रे ॥ रा० ॥क ॥ १॥ गढ मढ मंदिर धूजियां रे