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श्रीमोदविवेकनो रास. विरचे ज्यु कोइ दास हो ॥ ३० ॥ १७ ॥ थाकी गोपीने धरे, निज हाथे सारिका जेम हो ॥ वस्त्र उपायां तेहनां, प्रगटे तिणझुं बहु प्रेम हो ॥ ३० ॥ १५ ॥ वृद उपर चढीने रहे, गोपियोनां अंबर खेह हो ॥ नव न वि काम विडंबना, करतां नहिं आवे बेह हो ॥ ३० ॥ २०॥ जोरावर दू तो घणुं, पण हास्यो एकण सार हो। धर्ममंदिर कहे धन तिके, जे जीपे काम विकार हो ॥ ३० ॥ १ ॥
॥दोहा॥ ॥ जयंतहबा दूई करी,चाल्यो तिहांथी मयण ॥ कोइअनमी ने वली, इम बोले मुख वयण ॥१॥ किणहिकें यावीने कयुं, सुण स्वामी मुफ वात ॥ अचल एक कैलास , तिणपर शंनु कहात ॥ २ ॥ लोक कहे तेहने, महोटो श्रीमाहादेव ॥ जटामांहि गंगा वहे, चंझ रहे नितमेव ॥३॥ पा स त्रिशूल हथियार धर, वाहन वृषन विख्यात ॥ जग संहारण जोध ने, अष्टमूर्ति कहेवात ॥ ४ ॥ तीन नेत्र जेहने, जूषण नस्म नुजंग ॥ जे ह कहे में मदननें, जीत्यो कीध अनंग ॥ ५॥ एह वचन सुणी कोपियो, मोह कुंवर मनराल ॥ कन्यो मार्नु केशरी, देवा रिपुशिर फाल ॥ ६॥ मंत्री कहे मूको तमें, जटिल योगनो धार ॥ कहो किम काढीजें कदे, तृण ऊपर तरवार ॥ ७ ॥ काम कहे मूकुं नहि, मदनशत्रु कहेवाय ॥ स हस्त्र किरण नग्यांथकां, तिमिर नाव न रहाय ॥ ७ ॥
॥ ढाल दशमी ॥ ॥ सुमति सदा दिलमां धरो ॥ ए देशी ॥ मदन मोह शर सांधियु, बे जौ कीध गिरीश ॥ सलूणो ॥ कुसुम चाप करी चाढियो, शंकर ज्युं करी रीष ॥ स० ॥ म० ॥१॥धूणीधूप तूं कां सहे, बोड दिगंबर वेश ॥ स॥ हरिणादी परणावस्यां, कर सखरो घरवेश ॥ स०॥ म० ॥२॥ महादेव बोल्या तिसे, तुं मन्मथ विख्यात स॥ पी बुदि ए दीजियें,पहेली सुण मुफ वात ॥ सम॥३॥ प्रेत वनें शंनु वसे, जोजन निदा हाथ ॥स॥ जाजन मनुज कपाल , तिल रति नहिं का आथ ॥साम॥॥ एह अ वस्था के सही, कहो किण परघर थाय ॥ स॥ नारी नदीनुं पूर , साग रमांहि समाय सम॥५॥ रुंढ मुंम माला गले, यांख विरूप कहाय ॥ स० ॥ मुऊथी नासे कामिनी, हंसी थल न सुहाय ॥ स० ॥ म॥६॥