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श्रीमोदविवेकनो रास. ॥ ५ ॥ गुरुरुवाच ॥ मोह जीत्या हो तुमची वृद्धि होय के, ते तो इण परि जीपियें ॥ पुरवचनें हो जगमांहि विख्यात के, सर्व राजा दीपियें ॥३॥ तसु राणी हो केवलसिरी जाण के, निर्मलरूप निधान ॥ तसु लीणो हो रहे निशिदिन राय के, दिन दिन चढतो वान डे ॥ ४ ॥ तसु संवर हो महोटो उमराव के, सामंतमां सिरदार २ ॥ तसु घरणी हो मु मुहवा नाम के. जोगीसर हैये हार ॥५॥ तसु पुत्री हो संयमसिरीना म के, सकल जीवां हितकारिणी ॥ तसु कन्या हो परयो विवेक के, तेह होशे जयकारिणी ॥६॥ कन्यानी हो सखियां सुखकार के, पांच अने त्रण आखीयें ॥ एकेकी हो जीपे ले मोह के, एह वचन गुरु नांखियें ॥ ७ ॥
जामुख हो धर्म रुचि अणगार के, करकंफूनाषा आदरी ॥ वेयर स्वामी हो कीधी याहार शुक्षिके, देवनी निदा नही नवी ॥७॥ पडिलेहण हो वल्कलचीरी कीध के, समिति चोथी तिणे अनुसरी॥ज्ञपि ढंढण हो पर ग्वतां सार के, पांचमी समिति विधे करी ॥ ए॥ प्रसन्नचन्हें हो करी म ननी गुप्ति के, धोयां दुष्कृत ध्यानगुं॥ मेतारज हो धरि नाषा गुप्ति केको च उपर दयावानरां ॥ १० ॥ तनु निश्चल हो अनुनव तिणे पाय के, चि लातीपुत्र ते परगडो॥णे राखी हो तनुनी शुदि गुप्ति के, परमातम ध्यानी वडो ॥ ११ ॥ ए आते हो सखियां अनिराम के, संयमश्री साथें रसी ॥ ए परण्यां हो पी. विवेक के, मोह नणी करशे वसी ॥ १२ ॥
॥ दोहा ॥ ॥राय विवेक ए सांजला, मनमां करे विचार ॥ एक म्यानमां क्युं र है, वे सारी तरवार ॥ १ ॥ सुतवंती शीलधारिणी, घरमां बेठी नार ॥ ते ऊपर क्युं आणियें, साल समान विचार ॥ २ ॥ गाढागारीनी परें, कलहो करशे दोय ॥ घरट समोवड दो घरणी, प्रीत करण सम जोय ॥३॥ बी जी परणे सुख जणी, मूढ जिको नर होय ॥ इक दिशि कग्यो सूर पण,बी जी पडतो जोय ॥४॥ इम चिंतातुर देखीने, आइ तत्त्वरुचि नार ॥ मुख हसिने एम उच्चरे, सुण साहिब जरतार ॥ ५ ॥
॥ ढाल बही॥ ॥बे कर जोडी वीन जी ॥ ए देशी ॥ कर जोडी कामिनी कहे जी, तुं नर नाथ कहाय ॥ चिंता बहु नारी तणी जी, नबला नरने थाय । रा