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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. जेसर प्रमदा परणो तेह ॥ जिण परण्या प्रौढी दुवे जी, आत्म क्षि अजे ह ॥ रा० ॥ए आंकणी ॥ १ ॥ कुलवंती कामणी तीका जी, बहु मिलिया जस लेह ॥ अवधि या नां तजे जी,फटक न दाखे लेह ॥ रा० ॥॥ जगति जुगति मूके नहिं जी, नर्त्तान। नली नार ॥ सागर नदियां सो फि रेजी, गंगा महिमा अपार ॥ रा० ॥३॥ पुरुष रीति बीजी अ जी, ना री रीत न कांय ॥ वेली वृद समान में जी, पण क्युं सरिखा थाय ॥रा० ॥ ४ ॥ हदें हस्ती बांधी जी, वेली न धरे जाण ॥ इणि परें पुरुष प्रधा न ले जा, न करो कांही काण ॥ रा० ॥५॥ वदु नारी परण्याथकां जी, पुरुष जणी नहिं दोष ॥ संयमश्री यायांथकां जी, दं न धरूं मन दोष ॥रा॥६॥ निकला विकल धणी दुवे जी,नारी न तज्यो जाय ॥ःख सुख सरसुं माउली जी, सारस सम नवि थाय ॥ रा० ॥ ७ ॥ जिण आयां निज जय दुवे जी, हुँ से, तसु पाय ॥ एह वचन सुणि नारीनुं जी, हरखी बोल्यो राय ॥ रा० ॥ ए॥ शोक्यें एह सदु पर्नु जी, तो दुइ जयत अपार ॥ विलंब न कीजें तो हवे जी, सुण मंत्री शिरदार ॥रा० ॥ ॥ए ॥ अति नज्ज्वल परिणाम के जी, तेहिज सेवक थाय ॥ परधाने ए मूकियो जी, उलगशे जिण राय ॥ रा० ॥ १० ॥ महिर नली मो उप रेजी, राखे श्रीजिनराज ॥ कन्या तेह देवावशे जी, बांह ग्रह्यानी लाज ॥ रा० ॥ ११ ॥ मंत्री सज करी नरा जी, मूक्या जिनवर पास ॥ ए वि रतंत सदुलही जी, लई यायो चारुनास ॥ रा० ॥ १२ ॥ मत विश्वास करो हवे जी, वैरी वाध्यो वान ॥ आज राज्य अतुली बली जी, कोइ प्रग ट्यो निधान ॥ रा० ॥१३॥ तसु पुर नर नारी धरे जी, तुमगुं जाति वैर ॥ ॥ मंत्री जापतो नपरा जी, साधे सगलो नयर ॥ रा० ॥१४॥ वस्त्र तजे तप आदरे जी, लिखन पठन ध्यान लीन ॥ कामण ट्रमण आचरे जी, तुऊने करवा दीग ॥रा० ॥ १५॥ तुऊ नगरी लोकांजणी जी, लोनावे मुख मीठ ॥ श्राप सरिखा आचरे जी, एवं अचरिज दीत ॥रा ॥ १६ ॥
॥ दोहा ॥ ॥ मोह महीपति एहवो, दंन मुखें सुणि वाद ॥ फालनष्ठ वानर जि स्यो, पामे चित्त विपाद ॥ १ ॥ वैरी वधतो देखीने, मनमां करे विचार ॥ ति अवसर हवे मोहसुत, अरज करे अवधार ॥ ५ ॥