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४० जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. ॥सु० ॥ १७ ॥ लक्षण ए ते स्वामीना, सेवक चूका जाग रे ॥सु० ॥ प्र मादने वश दुइ रह्या, मोहें सीधा ताण रे ॥ सु०॥ १७ ॥ तेनणीप्रमाद बोडीने, खीजमत करजे खास रे ॥ सु० ॥ प्रस्तावें सघली करे, आ पणी जे अरदास रे ॥ सु०॥ १ ॥ शीख इसी माता तणी, शीश चढाई तेण रे ॥ सु०॥धर्ममंदिर कहे हवे सुणो, विवेक वदे हरखेण रे ॥सु॥२०॥
॥दोहा॥ ॥ पय प्रणमीने बोलियो, मीठा वचन विचार ॥ नर पशु पंखीमें स ही, मात दुवे सुखकार ॥१॥ पण साची माता तिका, बाखे शीख सुझा न ॥ हेमकोडि हितकारिणी, नहिं ते शीख समान ॥२॥ मानी ने शीख ते सही, मातु जे जे दीध ॥ सुधाकुंममां नाश्यें, कामगवी पय पीध ॥ ॥३॥ नंदन वन निरख्यो कियो,बावन चंदन लेप ॥ इणि परें सुख मुझने थयुं, सुणि तुम वचन अपेख ॥४॥ माता वचन नथापशे,सो सत पुत्र न होय ॥ सुख नापे माता जणी,व्याधि रूप ते जोय ॥५॥ इम माता हर्षित करी, पयो कुंवर तिवार ॥ माता हाथ माथे धरी, जाये राजवार ॥६॥
॥ढाल बारमी॥ ॥ रामचंके बाग, चांपो मोरि रह्यो री ॥ ए देशी ॥ परखदा बातम नाव, मांहि विराज रह्यो री॥ श्रीजगनाथ नरेंद, निरखी हर्ष गह्यो री ॥१॥ बत्र ढले सिरदार, सिंहासन पर राजे ॥धर्म धनुष धरि हाथ, कर णी खड्ग ते बाजे ॥ २ ॥ तवना बे कर जोड, पय प्रणमी ने करे री॥ तीन नुवननो नाथ, अनुपम शोन धरे री ॥३॥अष्टांग योगना धार, यो ग जोग नले री ॥ हृदय कमल तुज धार, ध्येयगुं जाय मिले री॥५॥ ॥ श्लोक ॥ अष्टांगयोगाः॥संयमो नियमश्चैव, करणं च तृतीयकम् ॥ प्राणा यामः प्रत्याहारः,समाधिर्धारणा तथा ॥ १ ॥ ध्यानं चैतस्य योगस्य, ज्ञेय मष्टांगकं बुधैः॥पूर्णागक्रियमाणस्तु, शुक्रमे स्यादशोचता ॥ २॥ सुर नर न मरा नूर, सेवे पाय सदा री ॥ तुझ पयपंकज सार, मनमें अधिक मुदा री ॥ ५ ॥ ज्योतिरूप जगनाथ, केवलरूप नयो री ॥ स्याहादी सु खरूप, नूप अनूप नयो री ॥ ६ ॥ नाव कर्म मल बोडी, आउँ रूप विरा जे ॥ तो सम अवर न कोय, दिन दिन अधिक दिवाजे ॥ ७॥ नव नव जमतां थाज, दर्शन तुमचो दीगो । बाज अधिकानंद, लोचन अमिय प