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श्रीमोदविवेकनो रास. शो ॥ ७ ॥ सुरतरु सम तुं राय, बीजा नूप करीरा ॥ तुं जातिनो हेम, य वर ते धातु कथीरा ॥॥ राम दम सघना नाव,आनंद अधिक घणारी॥ तम सेव्यां लहे लोक, नहिं कां रिक्षि मणारी॥१०॥ रविथी नासे घूक, मोरथी नासे नुजंगा ॥ तेम तुज आगथी दोष,न करे को परसंगा ॥११॥ जंगम स्थावर जीव, तुं सघलां सुखदाइ ॥ मित्र अमित्र समान, ए तुममें अधिका॥१२॥ तुम गुण केरो पार, कहेतां क्युं हि नावे ॥ पण याप एग। मति सार, सेवक नाव जगावे ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ श्म स्तवना जिन राजनी, कीनी वे कर जोड ॥ वली पंचांगें पय न मे, मन मद मबर बोड ॥१॥ कृपा कटादें जोइने, इमबोल्या जिनराज ॥ परखद बारां सांजलो, धरि चित्तमांहि समाज ॥२॥ वीर विवेक कहीजियें, ते ने एह कुमार ॥ नांतो नांत नली परें, तत्त्व बुदिनंमार ॥३॥ ना यक विना सेना किसी,झान विना ज्युं वाणि ॥ जल विण सरवर को नहिं, गुण विण लाल कबाण ॥४॥ धर्म कर्म तिम ए विना, सखरो नावे धात ॥जली बुरी सब नावनी, तुरत लखे ए वात ॥५॥ विकलेनियमां ए नहीं,पशु नरकमें नांहि॥प्रायः नरमां ए वसे, वत्नी आरज कुलमांहि ॥६॥ त्यां पण को विरला कने, पूरण लाने एह ॥ बीप घणी सघली नहि,मोती धारे जेह ॥७॥ अहंकार में नहिं, कृपणनाव नहिं कोय ॥ मीठा बोले मुख हसे, धर्मवंत वलि होय ॥ ७॥ लाजवंत मतिवंत ए, पर दोष ढंकण हार ॥ सुखमाहे मूंजे नहिं,दीन हीन दुःख चार ॥॥ विण उपकारें उपकरे, निर्मल गंग तरंग ॥ मुऊने ते होय वालहो, जे करे एहनो संग ॥१०॥ मुज पें आयो ए सही, अधिकार लेवा काज॥ते नणी एहने में कियो, इण पुर नो शेतराज ॥ ११ ॥ एह वचन नृपर्नु सुपी, सघले कीध प्रमाण ॥ न गरमां हि वासो दियो, कुंवर लहे बहु मान ॥ १२ ॥
॥ ढाल तेरमी॥ ॥ चित्रोडा राजा रे ॥ ए देशी ॥ इक दिन अरदासा रे, करे कुंवर प्र काशा रे, मोह जीपण आशा वासा, आणीये रे ॥ साहिब जिन राजा रे, अति सबल दिवाजा रे, फिर वेरी दुवा छे ताजा, जाणीये रे ॥ १॥ मन महरालो रे, सुःख खेतनो मालो रे, यति पापनो जालो आलो, मोह ले रे