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श्रीमोदविवेकनो रास.
॥ ढाल अग्यारमी ॥ ॥ दरिया मन लागो ॥ ए देशी ॥ इक दिन माता सुत जणी, शीख कहे मन लाय रे॥ सुत सुण सोनागी ॥ तुं माह्यो शाणो अडे,मात नणी सुखदाय रे ॥ सु० ॥१॥ हित वाणी पाणी जणी, राखण तुं ने जोग रे ॥सु०॥ पक्कघडो काचो नहिं, साचो सखर संयोग रे ॥ सु० ॥ २ ॥ हितवाणी कामधेनु डे, सतपुत्रकाने आय रे ॥ सु०॥ उष्ट कुसुत मातं गने, घरमां कहो क्युं जाय रे ॥ सु०॥३॥ सघलांने रुचती नथी, गुरु जन वाणी एह रे ॥ सु०॥ अमृतथी अधिकी अजे,जाणे स्वादी जेह रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ शुन उपदेश विना फिरे, नर नारी जगमांहि रे॥ सु०॥ लाव एय लक्षण बाहिरा, झान हैये जसु नांहीं रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ मात वाणी जाणे सही, अमृत धारा मेह रे ॥ सु० ॥ उखर देवतणी परें, मत देखा डे बेह रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ प्रवृत्ति शोक्य शमवा जणी, कीजें कोई उपाय रे ॥ सु ॥ एह अवस्था तिणे करी, जमवारो क्युं जाय रे ॥ सु० ॥ ७ ॥ पियु वियोग स्थान मुंशता, सुबुद्धि तणो नहिं योग रे ॥ सु०॥ ए कुःख सघलां नवि गणुं, गुनपुत्रने संयोग रे ॥ सु० ॥ ॥ धन नरिया नंमार जे, खातां खूटी जाय रे ॥ सु० ॥ अदयनिधि पुत्र संपदा, संसारीने था य रे ॥ सु०॥ए ॥ माता सदाइ पुत्रनी, आशा राखे नूर रे ॥ सु० ॥ ते तुज पुत्र रतन्नथी, क्युं मन न रहे सर रे॥ सु० ॥ १० ॥ सुकरी रास नीने घणा, पुत्र दुवा शी सिम रे ॥ सु०॥ सिंहिणी एको सुत जणे, स घलोई सुख दीध रे॥ सु०॥ ११॥ कुलमंदिर दीपक सही, कुलजामि नीचंद रे ॥ सु० ॥ कुलगाडी धुर धवल डे, सुपुत सदा सुखकंद रे ॥सु० ॥ १२॥ तमरूप वैरी वश करे, मील कमल ननास रे ॥ सु०॥ सुपुत्र सू रज नगे थके, शोनावे घरवास रे ॥सु०॥१३॥ हवे तुं ए नगरीनो ध एणी, सेव निरंजन देव रे॥सु० ॥ जास प्रसाद लह्यां थकां,सकल करे तुऊ सेव रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ मोह महीपति जीपता, कपर करसी एह रे ॥सु ॥ सेवक पण एहना अडे, मोह दावानल मेह रे ॥ सु० ॥ १५॥ उलग करजे एहनी, पाठ पहोर अप्रमत्त रे ॥ सु० ॥ साचो कतरजे सही, सा च नलो जग मित्त रे ॥ सु० ॥ १६ ॥ न रुचे कूड ए स्वामीने, कांई ति ल तुष मात रे ॥ सु० ॥ सेवा प्रमादने वेर ने, गाय अने वाघ जात रे॥