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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. रहियें दूर ॥ध०॥१५॥ आगे चाली उतावली रे हां, न रही एक पल मा त ॥ध ॥ कपिल योगी पण मव्यां रे हां,तिगान करीवात ॥ध॥१६॥ सेवक सघला मोहना रे हां, निवृत्ति नारी मन जाण ॥ध० ॥ वैरीनी परें परहस्या रे हां, नूले नांहि सुजाण ॥ ध० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ए४ ॥
॥ दोहो ॥ ॥ण परि सघली नूमिका, नमतीजमती नूर ॥ विसामो लाधो नहिं, खेद करे जे पूर ॥ १ ॥
॥ढाल बनी॥ ॥ रहो रहो रहो रहो वालहा ॥ ए देशी॥प्रवचन पुर गई पाधरी, पुण्य तणे अंकूर लाल रे ॥ निकट नावी निरखे सहि, पापीयडा दूर लाल रे ॥प्र० ॥१॥ चारित्र प्रासादने ऊपरें,धर्मध्वज लहकाय लाल रे ॥ दूरथकी पण देखतां, यानंद अंग न माय लाल रे ॥३०॥ ॥ पुण्य पवित्र परि णामथी,उपदेश नगरमां जोय लाल रे ॥ पाप कर्म चंकालन, पग पेसार न कोय लाल रे ॥प्र० ॥ ३ ॥ साधु शिरोमणि संत जे, नगर मध्ये रहे तेह लाल रे ॥ देशवति ने समकिती, बाहिर वसिया अह लाल रे ॥॥४॥ प्रवचन पुर वासी घणा, सघला सुखियाँ लोक लाल रे ॥ तत्त्वतणे सुख पागलें, तृण सम सुख सुरलोक लाल रे ॥प्र० ॥ ५॥ त्यांथकी मुक्ति पुरीनगी, साथ चले दिन रात लाल रे ॥ चोर चरड लागे नहिं,नीति त णी नहिं वात लाल रे ॥३०॥ ६ ॥ तसु पुरवासें वन बजे, इंडियदमन डे नाम लाल रे ॥ निवृत्ति नारी देखियो, अनुपम ए अनिराम लाल रे॥प्र० ॥ ७ ॥ साधुवदन ते कुंम बे, जिन वचनामृत नीर लाल रे ॥ नूर नविक पंथीनणी, जाये नवनी पीर लाल रे ॥ ॥ ७ ॥ धर्मवचन फल फूटरां, योगी मधुकर सार लाल रे ॥ निवृत्ति विसामो तिहां लियो,खेद गमावणहा र लाल रे ॥ प्र० ॥ ए ॥ योग त्रिनूमि आवास , तिहां इक नरने दीठ लाल रे ॥ दिलनर दर्शन तेहनु, अमृतथकी पण मीठ लाल रे ॥३०॥१०॥ विद्यानो नंमार ने, जाणे सघली वात लाल रे ॥ वंदना कीधी नारियें, जं गम तीरथ जात लाल रे ॥प्र०॥ ११ ॥ हाथ जोडीने पूछे सता, कोण तुं स्वामी आख लाल रे ॥ इण वनमांहे क्युं रहे, साचुं सघळु दाख लाल रे ॥ प्र०॥ १५॥ पुरुष कहे सुण सुंदरी, मारी सघली वात लाल रे ॥ वि