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श्री मोदविवेकनो रास.
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॥ ६ ॥ प्रारंभ मिथ्यामति घणा, निरवद्य नहिं ए वाय ॥ श्रांत थयां प ए मियें, नदीकूलनी बाय ॥ ७ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥
|| मेरे रहनां ॥ ए देशी || सुबुद्धि सुता वली त्यांथकी रे हां, धरिधी रज मनमांहि ॥ धर्म धुरंधरा ॥ चाली चतुरा चोंपशुं रे हां, काली पुत्रनी बांहि ॥ ६० ॥ १ ॥ तुं सुत सुरतरु बांही, तो सम अवर को नांह। ॥० ॥ एक ॥ कपुर बेठी कामिनी रे हां, कोलधर्म सुणी कान ॥ ६० ॥ विसामो इहां लीजियें रे हां, जो रहे आपणो मान ॥ ६० ॥ २ ॥ ए धर्म सेवे घणुं रे हां, तरुणपणे नर नारि ॥ ध० ॥ खाकर्षे लोको नली रे हां, ध
शब्द सुखकारि ॥ ६० ॥ ३ ॥ संत साधु मुख नच्चरे रे हां, याने बहु मान ॥ ० ॥ मंगल मांगे मन रली रे हां, गावे गीत ने ज्ञान ॥ ६० ॥ ४ ॥ रंगा चंमा दीक्षिता रे हां, धर्म दारा ने एह ॥ ध० ॥ सेव्यां शक्ति होशे सुखी रे हां, मन मत धरो रे संदेह ॥ ० ॥ ५ ॥ मद्य मांस खातां कां रे हां, इस गमे दोष नहिं ॥ ६० ॥ इम सुणी निवृत्ति चिंतवे रे हां, धिक् धिक् एहनी बहिं ॥ ६० ॥ ६ ॥ मोह मंत्रीना दास ए रे हां, संग जलो न हिं एह ॥ ० ॥ निवृत्ति तिहां दूती चली रे हां, शीलवती गुणगेह ॥ ६० ॥ ७ ॥ अवर नगर दीतुं ननुं रे हां, बौधमतीनुं गम ॥ ६० ॥ श्रातमनी चर्चा करे रे हां, ए होगें अनिराम ॥०॥ ८ ॥ तसु मुख एवं सांजल्युं रे हां, यातम कण कण नांहि ॥ ६० ॥ पुण्य पाप केहने नही रे हां, शून्यप यो जगमांही ॥ ६० ॥ ॥ माता पूबे सुत जणी रे हां, एहनुं खखे एम ॥ ६० ॥ विवेक पुत्र तव बोलियो रे हां, सुण माता कहुं तेम ॥ ६०॥१०॥ बोधने कहियें पुत्र तुंरे हां, पिता जो हो नांहि ॥ ६० ॥ व्याह जोगवेला जू रे हां, एक पिता क्युं सांही ॥ ६० ॥ ११ ॥ अपराध को बीजो करे रे हां, प्रवर दंमीजें कोइ ॥ ६० ॥ राजनीति पण उजवी रे हां, धर्मनणी किहां होइ ॥ ध० ॥ १२ ॥ शय्या सखरी सूइयें रे हां, पीजें खीर प्रजात ॥०॥ जोजन मीतुं कीजियें रे हां, सांख्यमतीनी वात ॥ ६० ॥ १३ ॥ सौगत मत ए सांजली रे हां, निवृत्ति नारी न सुहाय ॥ ६० ॥ तत्त्व कपूरने कर ग्रह्मां रे हां, दूषण न वेदाय ॥ ध० ॥ १४ ॥ मुग्ध मानव मृगपाश ए रे हां, जव टवीमां नूर ॥ ध० ॥ निरखी निरखी पग मंमियें रे हां, इथं