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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. नी कने ॥ उलंनो दिये एम, ए क्यु आइ हो जे कीधी मने ॥ १ ॥थ मगुं एवी प्रीत, फिर अम शोकडी हो मुख क्युं लगायें ॥ अहोनिश की में सेव, जीजी करिने हो तुजने गायें ॥२॥ उलंना वली एम, मंत्री ने पण हो माया उच्चरे ॥ प्रकति बुरी क्युं नारी, राज पधास्या हो नि तिने घरे ॥ ३ ॥ दूति तत्त्वदृग मूकी, तें बोला हो सुबुदि नए। इहां ॥ निंबु रसनी नाय, दीसतो हेज हो मिलता जिहां तिहां ॥४॥नोलो तुमन मंत्री, ए मुफ वातां हो साची सही॥ सुबुद्धिमली जो एथ, तो मुफ प्रनुता हो स्थिरता नां रही ॥५॥इम समजाव्यो मंत्री, माया नारी हो वचन कही घणां ॥ प्रति नणी कहे एम, करजे पुत्री हो आलोच मन तणा ॥ ६ ॥ देशवटानी वाट, निवृत्ति नारी हो जिण परें ए लहे ॥ की में तेह नपाय, तो ए प्रनुता हो निज हाथे रहे ॥ ७ ॥ विषमति पियुनी काली, आलस मूकी हो काम करीजियें ॥ तुझ सखिया पचवीश, किरि या सारी हो साथें लीजियें ॥ ॥ कायिक्यादि प्रसिह, धारां धीरां दो नव नव नायका ॥ ए पंचवीशमां इक टाली, इरियावहिया हो तुज नेह लाइका ॥ ए॥ निवृत्ति नारी जेह, गगुं नासे हो उनी ना रहे ॥ मारो ने विश्वास, चोवीशसेंती हो तुज आझा वहे ॥ १० ॥ ए सखियां अनि राम, जिण जग सघलो हो जेर कियो नलो ॥ सबलो सजियो साज, नि वृत्तिसेंती हो हवे कर साफलो ॥ ११॥ चोवीशे ले साथ, पियुयुं खेले हो नव नव रंगलॅ ॥ सखीयांनां सुख देख, पियुडो मोह्यो हो प्रमदा संग गुं॥१२॥ विन्रम विविध विलास, मुखनां मटकां हो लटकां अति म व्यां ॥ गायां वायां गीत, प्रीतम गे हो मुख पासा ढव्या ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ कहे प्रीतम सुण तुं प्रिया, मनमांहि लीजें ढूंश ॥ नवि पूरुं जो आ जथें, तो तुज गलाना खूश ॥ १ ॥ प्रवृत्ति कहे सुण साहिबा, निवृत्ति तारी नार ॥ ते मुफ हैडामां सही, वेज करे ज्युं सार ॥२॥ गोमुख घर एगी ए अने, थाढी शीली सार ॥ बरफतणी पर पीडवे, एनी वात अपार ॥३॥ तमथी पण गुदरे नहिं,नाजे करण विकार ॥गरव महेली गेहिनी. एनो उलटो चार ॥ ॥ माता पण ने एहनी, सूबानी सिरदार ॥ वैराग ण शी वावरी, न धरे लोकाचार ॥ ५॥ दोषवती जाणी करी, राजा दीधी