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श्रीमोहविवेकनो रास. काम ॥पिण॥१॥ घरनी सोह घरणी हाथे, ए वाणी हो में साची दी॥ कथन न मान्युं ताहरूं, परसंगें हो दुवो ढुं धीठ ॥ पि०॥ ॥ तुज प्रसा दथी पामिये, निज पदवी हो जे त्रिनुवन राज ॥ तुज विण दासपणुं न ज्यो, परघरना हो कीजें काज ॥ पि०॥३॥क्यां बांध्यो क्यांरूंधियो, क्यां पीड्यो हो क्यां वीटयो जोय ॥ क्यां मसल्यो क्या हत दु, क्यां किं कर हो क्या सेवक होय ॥पि० ॥४॥ दाल दुकम दुयो किहां, निर्धनिया हो कीधी बढ़ जात ॥ नव नव रंग किया तिहां, में सघनी हो न कहाये वात ॥ पि० ॥ ५ ॥ तुज विरहो वारु नहिं, में जाण्यं दो हवे पामी शीख ॥ माया मनमंत्री मली, मुफ कीधो हो ण आप सरीरन ॥ पि०॥ ६ ॥ में मंत्री महोटो कियो, इण कीधो हो मुफ एह प्रकार ॥ स्वारथियां सघ लां मल्यां, हवे सुंदरि हो तुंहीज आधार ॥ पि० ॥ ७॥ वांजे रविने शीत मे, जल वाह्यो हो नावाने धाय ॥ दृग वंडे अंधक नरु, तममाहे हो दी पक आवे दाय ॥ पि० ॥ ॥ण परि ढुं हवे तो नली, चित्त चाटुं दो मकुं परसंग ॥ दीनदयाल दया करी, हवे राखो हो मुझसेंती रंग ॥ पि० ॥ ए॥ शीलवती साची तिका, जे न तजे हो पति बापदमांय ॥ सयण तिके साचा सही, कुःखमाहे हो काढे यहि बांय ॥ पि०॥१०॥ में अव हीला जे करी, ते खमजो हो तुं सुगुणी नार ॥ रोष रखे मनमें धरो, श्म बोल्यो हो नूप वारंवार ॥ पि० ॥११॥ इण अवसर पुर्बुद राणी, अ णचिन्ती हो आवी तिण ताम ॥ तासु नयें करि त्रासवी, मा बेटी हो जाये निज धाम ॥ पि० ॥१२॥ बहु दिवसें मलिया दुता, मनमंत्री हो निवृत्ति विवेक ॥ सुबुद्धि राणी साथें दुती, नृप पासें हो आया था डेक ॥ पि० ॥१३॥ देखी शके नहिं उर्जना, संत मेलो हो तेहने न सुहाय ॥ धर्ममंदिर धन ते नरु, जे न करे हो वेढ राड उपाय ॥ पि० ॥१४॥
॥ दोहो ॥ ॥ माया नारी प्रवृत्ति बे, ए पण आवी तेथ ।। राजा मंत्री कुबुद्धिव ली, मलि रति बेला जेथ ॥ १ ॥
॥ ढाल दशमी॥ ॥ देशी हांजरनी॥ अथवा ॥ काल अनंतानंत, नवमांही जमता हो जे वेदन सही ॥ ए देशी॥ श्राइ नारी अचान, तीन मिल कर हो नरपति