________________
JJ
जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो.
थी वडकी ॥ घर अधिकारी स्थापियो जी, निज मुद्दा जसु दीध ॥ क ॥२॥ तेहवे मंत्री रायने जी, शेह करे प्रति जोर ॥ बांध्योथो पहेली सही जी, निवड बंधन करे उर ॥ क० ॥ ३ ॥ आप वधास्यो व्यापने जी, पीडाकारी जोय ॥ काष्ठ वधारे वन्हिने जी, काष्ठही बाले सोय ॥० ॥ ४ ॥ अल्पशक्ति राजा थयो जी, मूल नहिं ते नूर ॥ धूलपमल धूवे करी जी, ढांकी राख्यो सूर ॥ क० ॥ ५ ॥ मन मान्युं मंत्री करे जी, न्यायें न्याय विचार ॥ बांधे बोडे आपथी जी, हेतु अवर न लगार ॥ क० ॥ ६ ॥ मोजो माणे मन घली जी, ज्युं लहरी दरियाव | लूंटे खूटे लोकने जी, लाधी आपली दाव ॥० ॥ ७ ॥ लाख क्रोड वरसां लगें जी, तप करे धर्मनी खंत ॥ ते पण मनना प्रेरि याजी, सातमी नरकें जंत ॥क० ॥८॥ जोग नला सुख जोगवे जी, तेने या पे मोख ॥ सधली करणी एहनी जी, दोष घने गुणपोष ॥ क० ॥ ए ॥ तप जप दान दया सही जी, मन वि सघलो बार ॥ मनमेलु महोटो को जी, कतारें नवपार ॥ क० ॥ १० ॥ किा अवसर मन मंत्रवी जी, दीठगे विवेक कुमार || सौम्यवदन सरिखी कला जी, बोलाव्यो सुखकार ॥ क० ॥ ११ ॥ चित्त चितारी निवृत्तिनें जी, खाय खडी ते एम ॥ सद्बुद्धिने सं जारिने जी, विसरी विद्या जेम ॥ क० ॥ १२ ॥ समरी देवीनी परें जी, नजी श्रावी पास | नयणांनो मेलो हुई जी, उलस्यो अंग उल्लास ॥ क ॥ १३ ॥ माता पण यावी अबे जी, निजपुत्रीनी लार ॥ बांध्यो राजा लखी जी, दूरथकी निज नार ॥ क० ॥ १४ ॥ शक्ति नहिं मलवातणी जी, परव शने परकाश ॥ दासतणी परें हुइ रह्यो जी, प्रमदा नावे पास ॥ क० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ राजा हवे निज निंदतो, संजारे सोवार ॥ माया साधारण वधू, से व्यां एह विकार ॥ १ ॥ सुबुद्धि प्रिया में ताहरी, शीख धरी नहिं कांय ॥ ते ए चोरतली परें, बंधन एवडां थाय ॥ २ ॥ प्रौढी पावन तुं प्रिया, निर्मल गंगानीर ॥ ते तो तुं गुण आगली, हीर कीर दंमीर ॥ ३ ॥ तुं चिन्तामणि सारिखी, में बोडी मति मूढ ॥ मायाकाच करें ग्रही, जग सघलो ढूंढ ॥४॥ ॥ ढाल नवमी ॥
॥ वीर सुलो मोरी वीनती ॥ ए देशी ॥ पियु प्राखे प्रिया सांजलो, तुफ महोटी हो जगमांहे माम ॥ परथपकारी परगडी, थावीने हो कीजें निज