________________
श्री मोदविवेकनो रास.
२५
बोड || निज पुत्री पण तेहवी, सरखा सरखी जोड | ६ || गीत गान गा वे नहिं, हास्य विलास न कोय ॥ स्नान पान वली मान नहिं, व्यसन र सन नवि होय ॥ ७ ॥ जो अमनें दीधो लें, उलगरी अधिवास || देशवटो निवृत्तिने, दीजें ए अरदास ॥ ८ ॥ नागण तो मुख विष कही, व पु विष होय ॥ शोक्य नीच कां सापिणी, आदि अंत विष होय ॥ ए ॥ सा ती परें काढवे, सुतसेंती ए नार ॥ तो अमने सुख ऊपजे, जीवन
प्राणाधार ॥ १० ॥
॥ ढाल अग्यारी ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ कुंवर इस्यो मन चिंतवे ॥ अथवा || मेरी बहेनी क हे कां चरिज वात ॥ ए देश ॥ ए अरज मानी मंत्रवी, निवृत्ति कीधी विदाय ॥ यापद तेह सती तली, कविजनथें हो क्युं वरणी जाय ॥ १ ॥ माया मन उत्सव घणो रे || ए टेक ॥ हवे सीध्यां हो सघलाई काज ॥ उद्यम सफल ए टू रे, हवे होसी हो मोहकुंवरने राज || माया० ॥ २ ॥ परवश पड्यां जे मानवी, वली कामली रे हाथ ॥ तसु बुद्धि यामिनीमां सही, नही उगे हो न्यान वासरनाथ ॥ मा० ॥ ३ ॥ माता पिता पग ला गिनें, निज पुत्र साधें जेह ॥ नीसरी निवृत्ति तिहांथकी, पंथ चाली हो पं श्री परे तेह || मा० ॥ ४ ॥ निष्कंटक राज हवे हुनु, नीसरी निवृत्ति नारी ॥ प्रचंमपवनें प्रेरियो, जेम चाले हो ध्वज अंचल चार ॥ मा० ॥ ५ ॥ इम म न मंत्री दह दिशें, नमी रह्यो होनिश तेह ॥ ऋण एक पाठोनवि वले, वधि तृष्णा हो नावे तसु बेह ॥ मा० ॥ ६ ॥ डुर्बुद्धि माया प्रवृत्तियं, नीनो रहे निशिदीस ॥ वली वीनव्यो सघले मली, हवे पूरो हो इतनी जे जगीश ॥ मा० ॥ ७ ॥ मोहने राजा कीजियें, ए अधिक मन उत्साह || तुशुं सघ लो होय, ए अवसर हो लाजीजें कांह ॥ मा०॥ ८ ॥ सुत सहित निवृत्ति पण नहिं, सद्बुद्धि राजा दूर | व्यापणो अधिपति ए किहां, सुख होशे हो सघन जरपूर | मा० ॥ ९ ॥ जोरावर ए जोध बे, निजगुणें करि विख्यात ॥ याज नदय एनो अबे, ढील न करो हो हवे एहिज वात ॥ मा० ॥ १० ॥ मनमंत्री मानी वारता, मोहने राजा कीध ॥ यति घणां वाजां वाजियां, मनमांहे हो सघलां य सि६ ॥ मा०॥ ११ ॥ होकार करता नरपति, सुर पति सघला जेह ॥ धूजाव्या मोह राजा थये, प्रति अनमी हो तीन
૪