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श्रीमोदविवेकनो रास. कायरनी बांह ॥म॥ कमल नाल पुण ने धरो रे, वली वादलनी बांह ॥ म०॥ कयुं ॥ १६ ॥ वेलुघर रायनुज जिमे रे, खल वाणी वारि तेह ॥ म० ॥ मुख मीठी ए दती खरी रे, निपट नहिं जसु नेह ॥ म० ॥ कह्यु ॥ १७ ॥ तीन नुवनत्रायक हतुं रे, बल तहालं ते केथ ॥ म ॥ प्रता ते ताहरी किहां रे, रंक थयो रह्यो एथ ॥ म० ॥ कयुं० ॥ १७ ॥प्रायः स्त्री जगमां अजे रे, रांठें विण पगपाश ॥ म॥ रात विना अंधकार ए रे, पुरुष जणी करे दास ॥म ॥ कयुं ॥ १ ॥ पाणी विना ए पुरुष के रे, धूल विना रज लेप ॥ म० ॥ मदिरा विण मदमत्तता रे, क्युं रज नीरें दे प ॥म० ॥ कयुंग ॥ २० ॥ सुबुदि शीख इणि परें कही रे, प्रीतमने पर धान ॥ म० ॥ धर्ममंदिर गणि म कहे रे, अजहुँ माया मान ॥म० ॥
॥ दोहा ॥ ॥ वलि राणी इम वीनवे, सुण आतम माहाराय ॥ ढुं पण एहथकी मरूं, ना तुमचे पाय ॥१॥ माया पुत्र कुपुत्र जे, मोह इस्यो जस मान ॥ तुम शेही किण गुण करी, जीवन प्राण समान ॥ २ ॥ माया बदि कामिनी, बेहू एकज साथ ॥ बेद तजवा योग्य , सुण साहिव मुकना थ ॥ ३ ॥ निर्माल्य फूलतणी परें, अब जो बोडे एह ॥ रादुमुक्त ज्युं चं मा, सघली शोन धरेह ॥४॥ हितवत्सल प्रिया कह्यो, सघली वात विचार ॥ राजा सुणि बोल्यो नहिं, चिंतवे सुबुद्धि विचार ॥ ५ ॥ प्रायः पुरु ष कठोर दृढ, मन वच कायामांहिं॥ नमती खमती प्रेमें करी, क्युंही रीके नांहि ॥ ६ ॥ नारी सारीनी परें, तुरत फरे लही दाव ॥ कोमल कमलत गी परें, मृउ मन मुग्ध स्वनाव ॥ ७ ॥ नदीयां मीठां जल ग्रही, सिंधु स मी जाय ॥ खारो जीवन खार मुख, करि तस सहामो थाय ॥ ७॥ प्री तरीत धर्म नीतिने, मके सगुगोस्वाम ॥ तो जावीन मटे सही, सहजें होसे काम ॥ ए ॥ सुबुदि इस्युं मन चिंतवी, जाय रही निज ठाम ॥ सं कलेश स्थानक तजे, संत सदा सुखधाम ॥१०॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥चूनडीनी देशी॥अथवा ॥ कनकमाला इम चिंतवे, प्रेखी प्रद्युम्न स्व रूप रे, मन मोयुं अमारुनंदना ॥ ए देशी ॥ण अंतर मायामानिनी, मन मान तजीने आइ रे ॥ सूर्य यूति अलगी गयां, जेम यामिनी आवे धाई रे