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श्रीमोदविवेकनो रास. ॥१॥ दिन उगे ज्युं चन्मा, हिम पड्यां ज्युं वृदो रे ॥ कान्तिकला ज्यु हीन ए, दूतो अति हि ददो रे ॥ नायक ॥ २ ॥ निर्माण नारी मटयां, एक फजेती जोयो रे ॥ रंक नयो रजवट गयो, घेहलानी परें होयो रे ॥ ॥नायक ॥३॥ मूढ जयो मद बालसु, मूक जयो वली अंधो रे॥ बो बडो बोखो लघु जयो, मायाने प्रतिबंधो रे ॥ नायक ॥ ४ ॥ मोह मा हा मद प्रेरियो, सूक्ष्म निगोड़ जायो रे ॥ वली बादर निगोदमां, अनंत काल रहिवायो रे ॥ नायक ॥ ५॥ पृथ्वी पाणीमां ते उपजे, वाय वन स्पति तेमो रे ॥ सूक्ष्म बादर बेजम्यो, असंख्याता नव एमो रे नाय॥ क०॥ ६ ॥ कमी कीटक कुंथु नयो, कीटिका भ्रमर पतंगो रे ॥ विकलेनिश यमां बन जम्यो, माया मानिनी संगो रे ॥ नायक ॥ ७॥ नरपरि नुज परि खेचरा, जलचर जीव विशेखो रे ॥ पंचेन्ड्यि तिर्यचना, नवनो के हो लेखो रे ॥ नायक ॥ ७ ॥ साथ दुइ माया नारी, साते नरक देखा य रे॥ वायुवशे ज्यु पानडु, जल थल सघले जाय रे ॥ नायक०॥ए॥ हंस विचारे एकदा, किमही माया जायो रे ॥ जागी बांहतणी परें, लाग रही गल धायो रे ॥ नायक ॥ १० ॥ अनंत काल नव पंथ डे, पंथी सम नृप जायो रे ॥ फरतां थाको एकदा, नरवपु पुरमांबायो रे॥ नायक ॥११॥
॥दोहा॥ ॥ पुर पेसंतां श्क मल्यो, मनरूप बालक कोय ॥ आलिंगन आवी दी यो, शकुन नखं ए होय ॥१॥ अति सूक्ष्म तनु जेहनु, सुंदर चंचलरूप ॥ बालस नहिं उद्यमधरु, म चिन्ते मन नूप ॥२॥ पांचे शान्झ्यिनी क्रिया, मालम करशे मोही ॥ परपंची परधान ए, होशे राजनी सोही ॥३॥ श्म जाणी आदर दियो, माथे फेरी हाथ ॥ मधुर वचन बतलाइने, तुर त लियो ते साथ ॥ ४ ॥ औदारिक पुदंगल ग्रही, तनु पुर वास वसाय ॥प्राण उदान अपान वली, इत्यादिक पंच नाय ॥ ५॥ व्यापारी महोटा जिहां, पांचे इन्श्यि सार ॥ पाणी तेह वसाश्या, नगर दु शिरदार ॥६॥ इंमा पिंगला नारी तिहां, राय मार्ग सुखदाय ॥ नव हारें करी शोनतो, नुजधर्गल कहेवाय ॥ ७॥ सातुं धात कपाट वली, निपजाया बहु मान ॥ जब मन परजापति थयो, तब कीनो परधान ॥॥माया महिला रायनो, क्षण इक न तजे साथ ॥ण कारण अधिकार सब, मान प्रधानने हाथ ॥ ए॥