________________
२४ जैनकथा रत्नकोप नाग त्रीजो. रंग रलियां हो ॥ मा० ॥ १२ ॥ सुबुधिने वारें वासे, पियु नावे तेहनी पासें हो ॥ मा० ॥ सुबुधिने को नहिं मान, मायानो वाध्यो वान हो । ॥ मा० ॥१३॥ सुबुदिरागी इम ध्यावे, हवे प्रीतम हाथ न आवे हो ॥ मा० ॥ साची वात ए जो, लोक परघरनंजा होइ हो ॥ मा० ॥१४॥ बेहेनड शोक्य ए मेरी, मायायें ते पण फेरी हो ॥ मा० ॥ घरनो नेद ए जारी, तिण कां न फेरे सारी हो ॥ मा० ॥ १५ ॥बे नारी बे पासी, गथी ढुंजा नासी हो ॥ मा०॥ कामण करी पियु बांध्यो, तनु बगड्यो अन्न ज्युं रांध्यो हो ॥ मा० ॥ १६ ॥ नारी चरित्र ने नारी, मो विण कु ए जाणणहारी हो ॥ मा० ॥ नृपने सकल बतावं, जो अवसर सखलं पा q हो ॥ मा० ॥ १७ ॥ अवसर औषध लीजें, नवले तप क्युंही न दीजें हो ॥ मा० ॥ अवसर नदियां तरियें, नव पूर न नरवा करियें हो ॥ मा० ॥ १७ ॥ अवसर वेढ निवारे, बुध तेहिज वेला विचारे हो ॥मा० ॥ सुबु ६ इस्युं मन आणी, कोइने न कही हित वाणी हो ॥ मा० ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ मायाथी सुख सेवतां, पुत्र थयो परधान ॥ मोह नाम जग परगडो, वाध्यो संघले वान ॥ ॥ मोहथकी माया हवे, मायाथी मोह जाण ॥ अगुफ निश्चय नय जोवतां, कर्मतणी ए खाण ॥ २ ॥ बीजथकी सहकार बे, सहकारें बीज जोय ॥ पर्वथकी इदु नीपजे, इदुथकी पर्व होय ॥३॥ बगलांथी मां दुवे, मांथी बग देख ॥ ए अनादि संबंध ने, व्यवहारें बढ़ नेख ॥ ४ ॥ उर्बुदिने वलन घj, खेलावे धरि कोड ॥ मोह कुंवर मनोह र थयो, बीजो नावे जोड ॥ ५ ॥ माया पुर्बुदि एणी परें, मोह वधारे दो य ॥ नवि जाणे को पुत्र ए, बीढुंमें कहेनो होय ॥ ६ ॥ सहजे मेलो मोह ए, जनकजणी करें शेह ॥ हेतविना सदु लोकगुं, वैर वधारे मोह ॥७॥ पामातुर नरने सदा, मीठी खाज सुहाय ॥ पण ते सुःखदायक घj, मो ह इसी पेरें थाय ॥ ७ ॥ र्बुदि माया मोह मली, केद कियो हंसराय ॥ तेह दशा हवे वर्णवे, सद् सुजो मन लाय॥ ए॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ चरणाली चामुंम रण चढे ॥ए देशी॥ नायक लायक ने घj, पडियो परवश जायो रे ॥ जुआरी पर दारियो, रुक्षितणो व्यवसायो रे ॥ नायक