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श्री मोदविवेकनो रास.
॥ ढाल पांचमी ॥
॥ एक दिन दासी दोडती, आइकम ने पासरे ॥ ए देश ॥ बप्पन दिशनी कुंव री मिली, साचवे निज निज कम्म रे ॥ वासन कंपे प्रविधें करी, जाणि यो जिनवर जम्म रे ॥ १ ॥ जगतगुरु जनमिया गुनदिने, सुमति घर उत्सव यारे ॥ नारकी पण सुख पामियो, गायो सुरवधू प्राय रे ॥ जगतगुरु जन मिया० ॥ २ ॥ पद्म वासा वसवा जली, पद्मनी वृष्टि बहु होय रे ॥ देवता क्ति नावे करी, समकित बीज पण बोय रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ चोसठ सुरपति यावशे, मेरु शिखरें लेइ जाय रे ॥ जन्मोत्सव विविधें करी, पुण्य नो लान लेवाय रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ आनंद उलट नावयुं पूजा रची बहु प्रेम रे ॥ मातानी पास याणी घरे, कहे होजो कुशल ने देम रे ॥ ज० ||५|| हेमनी कोडी त्यां वरसीने, देवता स्थानक जाय रे ॥ मात ने तात मन हर खियां, निरखियो पुत्र सुहाय रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ पद्मनी वृष्टि पुहवी तले, पग पग दुइ अभिराम रे || एहनो अर्थ मन आणीने, होयशे पद्म नान नाम रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ मानवी दानवी देव ए, पालियें लालिये तेम रे ॥ अंगुष्ठ पान पीयूषथी, तनुतणी पुष्टता एम रे ॥ ज० ॥ ८ ॥ कथी अंक पर घी, हाथथी हाथ वली जेइ रे ॥ कोड कर होड कर खेल वे, सुरवधू नरवधू के रे ॥ ज० ॥ ए ॥ बालकरूप घरी देवता, खेलशे तेहनी साथ रे ॥ हर्ष धारे मनमां घणो, सहजशुं जो ग्रहे हाथ रे ॥ ज० ॥ १० ॥ याव वरसना हुया जिसे, प्रापथी पंमित एह रे ॥ तात इम जा लीने तेहने, राज देशे बहु नेह रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ तरुणता संपदा साहि बी, अंतर एह त्रिदोष रे ॥ पय्यनोजन उदासीनता, जे धरे तास बहु तो परे ॥ ज० ॥ १२ ॥ उद्यम देश साधनतणो, कीयो तिरो तिल समे प्राय रे ॥ पूर्णन मानि देवता, सेनान । तमु थाय रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ यु६ नुं काम ते सुर करे, अनुपम पुण्य पमूर रे ॥ दानव मानच देवता, सेवशे व्यावि हजूर रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ देवसेना नाम तव थयो, भुवनमां नूरि वि ख्यात रे ॥ पुत्रसम में प्रजा पालतो, धारतो राज्यंग सात रे ॥ ज० ॥ १५॥ ॥ दोहा ॥
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॥ इक दिन सेवक वीनवे, सुण स्वामी सस्नेह ॥ मयगल मस्तो मन हरु, शैलोपम सम देह ॥ १ ॥ चन्ड़्ती परें कजलो, चार दंत गजराज ॥