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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. ॥ ॥ जसम समी नूमि तेह, होजी ताता निवाहतणी पेरें । समय स्व जावे मेद, होजी तिहां किणे गुन श्म अनुसरे ॥ ३ ॥ पुष्करावर्त बंदु मे ह, होजी वरसशे शुन धारा करी ॥ त्यार पड़ी दीर जेम, होजी वरसशे घृ त धारा धरी ॥ ४ ॥ मीठी धरती थाय, होजी चीकणी बदु रस सारणी॥ प्रीतमनो संग पाय, होजी ज्युं नारी सुख धारिणी ॥ ५ ॥ वसुधा वाध्यो वान, होजी वृद अंकुर प्रगट थया ॥ हर्षित दूइ जीहान, होजी वहा ला मल्या ज्युं दुःख गयां ॥ ६ ॥ समय स्वनावें होय, होजी नूमि सबे व सुधारिका ॥प्रगट्या पर्वत जोय, होजी रात्रि समे ज्युं तारिका ॥॥ स्थि र परनावथी एम, होजी उपचय चय होवे सदा ॥ पुजल परणित तेम, होजी जगवंत नांख्यो श्म मुदा ॥॥ बीजो आरो बदु जाय, होजी त्रीजो आरो निकटें यदा ॥ इणिपरे जरतें थाय,होजीचढत पडत रीत ए तदा॥॥
॥दोहा॥ ॥ मित्रप्रन संनूम वली, सुप्रन स्वयंप्रन तेम ॥ दत्तसूक्ष्म सुबन्धु ति म, अनुक्रमें कुलगर एम ॥ १ ॥ वैताढयगिरि निकटें होशे, शान्तिधार पुर नाम ॥ कुलगर होशे सातमो, सुमति नाम अनिराम ॥ २ ॥ सुनागी सु खियो घणुं, जोग पुरंदर काम ॥ सुमति यथार्थ सुमतिधर, वधती होशे माम ॥ ३ ॥ तसु घर ना जारजा, शील गुणे शिरदार ॥ शील सोवननी कसवटी, प्रमदा प्रेम उदार ॥ ४ ॥ पहेली नरकें पाथडो, सीमंतो इण नाम ॥ त्यांथी श्रेणिक पातमा, अवतरशे ण ठाम ॥५॥ मानसरोवर हंस ज्युं, मुक्ताफल सीपमांय ॥ जज्ञकुख अवतारा, सुरतरु सम जसु बाय ॥६॥ चौदे स्वप्नां देखशे, सुख सूती तेनार ॥ सुमति स्वमतिगुंबाखशे, उ तम स्वप्न विचार ॥ ७ ॥ तिण प्रस्तावें आवीने, इन्६ कहेशे एम ॥ तीन नुवन शिरसेहरो, पुत्र होशे बहु प्रेम ॥ ७॥ गुन लक्षण कुख ताहरी, र यण वैरागर खाण ॥ मंदिरनी तुं कंदरा, गर्ने कल्पतरु जाण ॥ए॥ सुर नर किन्नर मधुप गण, जस पद पंकज लीन ॥ प्रथम तीर्थकर होयशे, थ धिक अधिक परवीण ॥ १० ॥ एम कही इन्झ गया पडी, हर्षित तन मन होय ॥गनेतगी रहा करे, पथ नोजन ले जोय ॥११॥ तब दोहना पूरा होशे, गर्नतणे अनुसार ॥ नव मासे अधिके थये, सुत होशे सुखकार ॥१२॥