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श्रीमोहविवेकनो रास.
॥ दोहो॥ ॥ श्राचारिज कहे सांजलो, शान्तिरसक जे होय ॥ तेहतणां लक्षण कहुँ, परखेजो सदु कोय ॥ १ ॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥ आनंद समकित नञ्चरे रे लाल ॥ ए देशी॥ शान्ति सदा रस सेवियें रे लाल, कीजें एहरां प्रीत सुखकारी रे ॥ ब्रह्म मुहूर्त प्रातनो रे लाल, तिहां कीजें एह रीत सुखकारी रे॥शांति सदा रस सेवियें रे लाल ॥१॥ आलस निशबे तजे रे लाल,आत्मचिन्तक होय सु०॥ स्थिर मन तन वचने करी रे लाल,ज्ञान नयनशुं जोय सु० ॥शां॥२॥ कामीने वादी दुवे रे लाल, दं
जी लोनीलोल सु०॥ बहिर्मुखी कुमती सदा रे लाल,गीत गायन रंग रोल सुशां०॥३॥ मुंजाणो इन्श्यि विषे रे लाल,मानी क्रोधनो गेह सु०॥ विश्वा सघाती वक्रता रे लाल, तुरत दिखावे बेह सु० ॥ शां० ॥४॥ एवा दोष जिहां नहि रे लाल, तेहिज पुरुष प्रधान सु० ॥ रोष धरे नहिं दूहव्या रे साल, मान दीयां नहि मान सु०॥ शां० ॥ ५ ॥ हुं कुण क्यांथी यावि यो रे लाल, कुण डे माहरु रूप सु०॥ मित्र शत्रु कुण माहरा रे लाल, मोह माया ए कूप सु० ॥ शां०॥६॥ संबल साथें झुं हशे रे लाल, का ज्योतिमां जाय सु० ॥ वैराग्यें मन वालियुं रे लाल, इम आतमगुं धाय सु० ॥ शां० ॥ ७॥ इव्य नयातम पातमा रेलाल, एक निश्चे नहिं नेद सु० ॥ व्यवहारे बदुनेद ले रेलाल,
तिमाहे नव खेद सु०॥शां० ॥७॥ अंतरंग बहिरंगना रे लाल, धर्म पटंतर जोय सु ॥ परमाणु मेरु शैलनो रे लाल, एवडो अंतर होय सु॥ शां० ॥ ए॥ काने पाप सुणे नहिं रे लाल, परदोष देखे न कोय सु० ॥ पंमित पण मौनता नजे रे लाल, स म रस साधे सोय सु० ॥ शां०॥१०॥ साध्य दशा साधक नजे रे लाल, अन्यासे नर जेह सु०॥इन्डियनी वृत्ति वश दुवे रे लाल,देखे स्वरूपने तेह सु० ॥ शां०॥ ११॥ बहिरातमता मूकीने रे लाल, अंतर बातम लीन सु०॥ रूपातीत ध्यान धावता रे लाल, मूक प्रथम ध्यान तीन सु० ॥ शां० ॥ १२॥ ते परमातमता नजे रे लाल, सम रस साधक जेह सु०॥ दोष सकल दूरें दूवे रे लाल, थावे ज्ञान अह सु० ॥ शां० ॥१३॥ बि हुँ ने सदु जीव रे लाल, नव्य बनव्य प्रकार सु० ॥ नव्य ते सिम