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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. होशे सही रे लाल, अनव्य फिरे संसार सु० ॥ शां० ॥ १४ ॥ सिम ते तीन प्रकार रे लाल, दूर आसन ने मम सु० ॥ पुजल अर्दै सीमशे रे लाल, अंतरे कहियें सिम सु० ॥ शां० ॥१५॥ अंतर मुहूर्त सीजशे रे ला ल, ते आसन कहाय सु० ॥ ए बेहु विच जे दुवे रे लाल, मध्यम सिम सुहाय सु० ॥ शां० ॥ १६ ॥ इहां मध्यम सिफ्नो कहुं रेलाल, आतमनो अधिकार सु०॥ मोह विवेक हंस चेतना रे लाल, वलि एनो परिवार सु० ॥ शां० ॥ १७ ॥ नविक जणी प्रतिबोधवा रे लाल, कल्पना कीधी एम सु०॥ यांन बोल्या पन्नव जणी रे लाल, ए पण दृष्टांत तेम सु० ॥ शां० ॥१७॥ परमारथ साधन जणी रेलाल,कीजें एह उपाय सु० ॥ जन्म ज रा फुःख मेटीय रे लाल, ज्ञान लब्धि सिम थाय सु० ॥शां०॥ १५॥श्रा तमनो अनुनव दुवे रे लाल,पाप तिमिर कुःख दूर सु०॥ धर्ममंदिर ज्ञान सेवतां रे लाल, सासतां सुख नरपूर सु० ॥ शां॥२०॥ सर्व गाथा ॥५३॥
॥दोहा॥ ॥ निश्चय नय निजगुण करी,सदा विराजे एह ॥ बातम अविकारी अ चल, व्यवहारियें धरि देह ॥१॥ माया नारी वश कियो, चेतन राजा जे म ॥ मोह विवेक विरतंत सब, नवि जन सुणजो तेम ॥ २ ॥ १६ वचन अनुसारथी, ए अधिकार करे ॥ बालक अटवी कतरे, गुरुजन हाथ धरे ॥३॥ पद्मनान नगवंतनो, शिष्य नावि अणगार ॥ धर्मरुचि नामें नलो, कहेशे सकलविचार ॥४॥
॥ढाल त्रीजी॥ ॥झर अांबा थांबली रे ॥ ए देशी ॥ जंबुदीप ए जाणियें रे, गोलत णी परें होय ॥ मध्य मेरु नानि समो रे, दीसते अरका जोय ॥ नविकज न,सुणजो ए अधिकार ॥१॥ ज्युं लाने अनुनव सार,ज्युं पामे नवनो पार ॥नासु। एमांकणी ॥ मेरुथी दक्षिण दिश नलो रे,नरत देत्र कहेवाय ॥ रत्न लान लोजें करी रे, समुइ निकट रहेवाय ॥ न ॥ सु० ॥॥ एथ वसर्पिणीमां दुवा रे, तीन आरा बदु मान ॥ चोथा थारा बेहडे रे, दुवा श्रीवईमान ॥ न० ॥ सु० ॥ ३ ॥ सात हाथ सुप्रमाण ले रे, सोवन वर ण शरीर ॥ सिंह लंबन शोने नलो रे, जिनवर श्री महावीर ॥ ज०॥सु० ॥४॥ तस पद पंकज नमर ज्युं रे, सेवे श्रेणिक राय ॥ गिरुन श्रावक गु