________________
श्रीनपमिति नवप्रंपचनुं स्तवन. १११ धार, जगत त्रण केरो विस्तार ॥ ७१ ॥ गिरिविवेक ऊपर अति सखर, अ प्रमत्तता नामें शिखर, नगर जैनपुर त्यां नल्हसे, सदा सुखी त्यां नविज न वसे ॥॥ तेह नयरमांहे क चित्त, समाधान मंझप सुपवित्त ॥ ते ह तले रहेतां संताप, सवि जाये प्रगटे सुख व्याप ॥७३॥ निःस्टहता नामें वेदिका, तिहां विराजे उख नेदिका ॥ ज्यां बेठा विषयादिक नोग, व स न करे न होये सुख सोग ॥ ४॥ जीव वीर्य त्यां शासन चंग, ज्यां उपजे समरंग अनंग ॥ जस अनुनावें चेतन कला, प्रगटे चिदुदिशि य ति निर्मला ॥ ७५ ॥ चारित्रधर्म तिहां माहाराज,राज्य करे अति सुंदर सा ज ॥ वदन अनोपम जेनां चार, दान शील तप नाव उदार ॥७६ ॥ण रूपें ए जग नहरे, सकल जीवने आनंद करे ॥ कतारे नवसायर पार,पो होंचाडे शिवनयर मकार ॥७॥ विरतिनाम जस नारि अनूप, पियुसरखं जस सकल स्वरूप ॥ मुक्तिपंथ देखाडे हसी,तेहने धन जस हैडे वसी ॥७॥ वडो कुंवर तेनो यतिधर्म, जे सेहजें यापे शिवशमें॥लघुनंदन श्रावक या चार, अंग तुंग सोहे जस बार ॥ नए ॥ सामायिक वहाव, परीहार सु विसुझ सहाव ॥ सुदुम संपराय अहरकाय, पंचरूप वड कुंवर राय ॥ए॥ अवर रूप वलि दश एहनां, नाम सुणो कहियें तेहनां ॥ खंती अऊव म हव मुत्ति, सत्य शौच तप संयम युत्ति ॥ ए१ ॥ ब्रह्मचर्यने अकिंचन्य, ए ह रूप सेवे ते धन्य ॥ रूप एकमांहे प्रतिरूप, तेह अनेक धरे वररूप ॥ ॥ ए२ ॥ रूप बार सुणियें तपतणां, सतर संयमनां सोहामणां ॥ इणिपरें कहेतां नावे पार ॥ चारित्रधर्म तणो विस्तार ॥ए३॥ तिम सन्नाव सरलता नार ॥ यतिधर्म घरणी मनुहार ॥ एक एक विना नवि रहे, स्त्रीनरतार स बल सुख लहे॥ ए॥ ॥ श्रावकधर्म तणी पतिव्रता, जे नारी सशुण रक्तता ॥ सम्यगदर्शन महेंतो धीर ॥ धर्मरायनो वडो वजीर ॥ए५॥ सप्ततत्त्व मंदिर मां रमे, शमसंवेग दया परिणमे ॥ गुन आस्था वलि नवनिर्वेद, इष्ट मित्र जसु टाले खेद ॥ ए६ ॥ मैत्री मुदिता करुणा सार, मध्यस्थता सहियर प रिवार ॥ सुदृष्टिनाम गुणरयणे जरी, महेंताने घर अंतेरी ॥ ए७ ॥ सारे सवि नविजननां काज, सदा संजाले नरपति राज ॥ देखाडे शिवमा रग जोग, तेहथी रहियें गुन संयोग ॥ए ॥ विमलबोध मंत्रीसर वीर, च तुर विचरण साहस धीर ॥ जाणे सकल लोकनी वात, पार नही