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श्रीमोदविवेकनो रास. १०३
॥दोहा॥ ॥ परम हंस राजा तिहां, राज करे नितमेव ॥ प्रह उठीने प्रणमतां, मन वंडित ततखेव ॥१॥
॥ ढाल अढारमी॥ ॥ देशी हंसलानी ॥ निश्चे गुण हंस रायना, ते सुणजो दो नविजन मन लाय के ॥ हंस जी नलो जलो ॥ हंस राजा हो अति धवल सुहाय के ॥ हं० ॥ लोकालोक विलोकिने, सुख माने हो निजपद सुपसाय के ॥ हं॥१॥ बंधन सवि दरें गयां, ज्योति प्रगटी हो अतिही नदार के ॥ हं० ॥ अलख अरूपी अातमा, अविनाशी हो परब्रह्म प्रकार के ॥ हंग ॥ ५॥ अकथ अकर्ता ए सही, चिपी हो चिदानंद विलास के ॥ हं॥ विषयातीत अजीत ए, चिन्मूरति हो चिन्मय सुप्रकाश के ॥ हं० ॥३॥ अगुरु लघु गुण शोनतो, खेम रूपी हो माहाधाम निधान के॥हं॥ परम प्रबोध प्रकाश ए, संघाती हो शिवरूप प्रधान के ॥ हं० ॥ ४ ॥ ज्ञानादि क गुण शोजता, ज्ञानदृष्टि हो निज सकल स्वरूप के ॥ हं० ॥ निष्कलंकी निर्लेप ए, निःसंगी हो निनोंगी नूप के ॥ हं० ॥ ५ ॥ इव्य गुणें करी ए क, झान दर्शन हो चारित्र अनंत के ॥ हं०॥ संसारी सुख जे धरे, तो तेहने हो कुःख माने संत के ॥ हं० ॥ ६ ॥ अविकारी अविकारनु, सुख माणे हो निज गुण निर्माय के ॥ हं० ॥ वचन अगोचर एहनां, गुण व
न हो केवली न कहाय के ॥ हं ॥ ७ ॥ संसारी सुख एकठो, सदु की जे हो मन बुद्धि विज्ञान के ॥ हं० ॥ एहयकी अधिको सही, लवें सत हो सुर सुख निधान के ॥ हंगा॥ हंस राजा सुख अगलें,अनंत नागें हो हीणो सुख तेह के ॥ हं० ॥ सदा विराजित एहवा, गुण प्रगट्या हो ना वे तसु बेह के ॥ हं ॥ ए॥ किण इक नृप ज्युं आणियो, निन्न वननो हो उपकारी जाण के ॥ हं० ॥ सघलां सुख तेहने दियां, नव नवला हो दियां खान ने पान के ॥ हं० ॥ १० ॥ फिरी ते अटवीमां गयो, आवी मीलियो हो सघलो परिवार के ॥६॥ पूजी वातां सुखतणी, कही न श के हो सघलो विस्तार के ॥ हं० ॥११॥ सरखां करीने दाखवे, ते वनमां हो नहिं कां वात के ॥ हं० ॥णी परें सुरव हंस राजनां,कही न शकुं हो सघलां विख्यात के ॥ हं० ॥ १२ ॥ कारमुं सुख संसारनु, रोग शो