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श्रीमोदविवेकनो रास.
॥दोहा॥ ॥ जय जय शब्द सदु नणे, धन धन तुं माहाराय ॥ न्यायधर्म दीपा वियो,तेरम गुणगाणां पाय ॥१॥ निज पद प्रनुता पद लह्यो, लाधो मूलगो राग ॥ बंधन अरि दूरें गया, परमहंस नृप राज ॥२॥ सुरपति नरपति नावगुं,मन मद मबर बोडि॥जवनय बंधन मकवा,सेवे ले कर जोड ॥३॥ वाणी इणि परें नांवशे, नविजनने नपकार ॥ निज गुण परगुण कर्म रिपु, विवरो धरजो सार ॥ ॥ मोहराय जीत्या विना, शिवपद लहियें केम ॥ जीपणनी विधि में कही, सघली मांमी एम ॥ ५ ॥ विनय विवेक विचार गा, आतमनो गुण एह ॥ वस्तुथकी जोतां थकां, उपावन धरी नेह ॥६॥
॥ढाल पन्नरम। ॥ ॥कपूर दवे अति जलो रे ॥ ए देशी ॥ ग्रामणी आगे ए कह्यो रे. सघलो ए विरतंत ॥ परम हंस ढुं की परें रे, दु निरख तुं संत रे प्राणी ॥ कर श्री आतमधर्म, जीपीजें ज्युं कर्म रे प्राणी ॥ क० ॥ ए आंकणी ॥१॥ हंस नाम ते माहरूं रे, मूल गुणें निर्धार ॥ रूढ नाम ते धर्मरुचि जी, एह अरथ अवधार रे प्राणी ॥ क ॥२॥ माया मोह ए में किया जी, नाना रूप प्रकार ॥ सुमति विवेक विना सहू जी, नरिया पाप नंमा र रे प्राणी ॥क०॥३॥ यापद संपद नविलहे जी, ज्ञानतणो कियो मान ॥ जूलो चामक नावगुं जी, न धस्यो निरंजन ध्यान रे प्राणी ॥ क ॥४॥ बहुविध जीवायोनिमें जी, बदविध धरियां नाम ॥ नानाविध त्यां मुःख सह्यां जी, सघनी फरसी नाम रे प्राणी ॥ क० ॥ ५ ॥ समयतणो बल साधीने जी, श्रीपरमेष्ठि पसाय ॥ मलिया विवेक वैराग्यशुं जी, में जी त्यो मोहराय रे प्राणी ॥क०॥ ६ ॥ मोह जीप्यो माया गई जी, नाना वि षय विकार ॥ निज गुण मणि करि शोनतो जी, परतिख देख तुं सार रे प्रा पी॥क०॥७॥चेतना पटराणी मली जी, नीके निर्मल नूर ॥ सतीय शिरोमणि शोजती जी, दीगो आनंदपूर रे प्राणी ॥ क० ॥ ॥ राणी गुण केता कहुँ जी, गणतां नावे पार ॥ अविचल पद हवे एहथी जी, ग्रामणी तुं अवधार रे प्राणी ॥ क०॥ए । कर्म नरम दूरे गया जी, आयो आप स्वजाव ॥ ज्ञान सूरज नग्यो सही जी, नाठो विकल विनाव रे प्राणी ॥ ॥क० ॥ १० ॥ श्म सुणी ग्रामणी आखशे जी, साची सघली वात ॥ ए