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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. नव मुफने तें दीयो जी, जेदाणी मुफ धात रे प्राणी ॥ क० ॥ ११॥ मो ह माया करी नवि लख्यो जी, एह स्वरूप विचार ॥ मिथ्या तिमिर दूरें गयां जी, स्वामी मुऊने तार रे प्राणी ॥ क० ॥ १५ ॥ नूर जरम नाशी गया जी, सूरज साचो दीठ ॥ ए विरतंत में अनुनव्यो जी, अमृतथी बदु मीठ रे प्रा एगी॥क० ॥१३॥ आप समोवड मुफ करो जी,अवधारो अरदास ॥ चर एए न बोडं ताहरांजी, बोडि विनवनो पास रेप्राणी ॥क०॥१४॥ सं वेग निर्वेद देखिने जी, धर्मरुचि अणगार ॥ देशे दीदा तेहने जी, आणी मन नपकार रे प्राणी ॥ क० ॥ १५॥ ग्रामणी दीदा लेश्ने जी, रहेशे गु रुनी साथ ॥ तप जप संयम खप करे जी, होशे सदुनो नाथ रे प्राणी ॥ क० ॥१६॥ ग्रामणी कर्म खपाइने जी, लेहशे केवल ज्ञान ॥ लोकालो क विलोकशे जी. अनुपम रूप निधान रे प्राणी ॥ क० ॥ १७ ॥ मुक्त जाशे मुनिवरु जी, ए जिनधर्म पसाय ॥ धर्ममंदिर गणि तेहनां जी, चरण नमे चित्त लाय रे प्राणी ॥क० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ चेतना राणी एकदा, अवसर समयो देख ॥ हंसरायने वीनवे, वारू वात विशेष ॥१॥ ज्ञान अंतर दर्शन वली, अनंत वीर्य सुखकार ॥ अवि चल पद पुर परगडो, तिहां जश्ये अवधार ॥ ५ ॥
॥ढाल शोलमी॥ ॥ अस्थिर आ संपदा रे ॥ ए देशी ॥ काया नगरी कारमी रे, अशुचि तणो नंमार ॥ सात धात नव बारणांरे, मांस रुधिर विस्तार ॥ वालेसर वी नवो रे आतम तुं अवधार ॥वा॥ ए आंकणी ॥१॥ चर्म मांस अांता शिरा हाडें करी रे, बंधाणो जस बंध ॥ लाल सिंहासन मल मूत्रा रे, वास रह्यो मुर्गध ॥ वा ॥ ५ ॥ दमक चमक कंचन जिसी रे, परि पुजल परसंग ॥सु रति मूरति सोहिणी रे, हणमें पामे नंग॥वा॥३॥मणिमुक्ताफल ए नहिं रे, कंचन रंग नहोय ॥मोही जन मोही रह्या रे, वार वार मुख जोय॥वाण॥४॥
अन्न पान धृत गोल जे रे, सखरां फल फूल पान ॥ चूया चंदन अरगजा रे, तनु संगें मणि जाण ॥ वा० ॥ ५ ॥ नक चक्र म कनपा रे, नकुल नंदर सिंह साप ॥ नृत प्रेत मंत्र शाकिनी रे, गुल्म ग्रंथि वात ताप ॥वा० ॥६॥ चक्र धनुष बाण खड्ग जे रे, बरबी तुंब बंदूक प्रहार ॥ इत्यादिकथी