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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. दा सुविचार ॥ ४ ॥ तुं आज्ञा दे मंत्रीने, ज्युं करे अनि प्रवेश ॥ अति आ ग्रह कीधां थकां, वींददीयो आदेश ॥ ५ ॥ चढी गुणगाणे बारमे, नाव तीर्थ जल स्नान ॥ स्नातक दायिक कुंकमां, शुरू यो बद्ध मान ॥६॥ अंतराय प्रचला प्रमुख, इंधण कर्म विशेष ॥ गुक्त ध्यान पायक प्रबल,मन मंत्री शुक्ष शेष ॥ ७ ॥ सारखी वीर विवेक दुय,वली बीजो परिवार ॥ गत वीर जग तीवेद दुय, जस्म थयो तिणवार ॥ ७ ॥ मूल ज्योति परगट नइ, प्रगट्यो चेतन राय ॥ श्ण अवसर हवे मूलगी, चेतन राणी आय ॥ ए॥
॥ ढाल चौदमी ॥ ॥ थारो केशरियो कसनीनो ॥ ए देशी॥ अब चेतना श्री वीनवे राणी ॥ सुजो साहिब जी ॥आज अवसर पायो मनहर प्राणी ॥ सु० ॥ ढुं एटला दिन जे तुम ना ॥ सु० ॥ ते सब गुनहो बज्यो मन लाई ॥ सु० ॥ १ ॥ हुँ अविहड नेहो मनमां धरती ॥ सु०॥ हवे आप मिट्या ज्युं मेहने धरती ॥ सु० ॥ हवे जूया न दूया कबही वहाला ॥सु०॥ ऊरख मारो माया दोषी काहला ॥ सु० ॥ २॥ हवे हुँ तुम चरणनी दुइ दासी ॥ सु० ॥ ज्युं मानसरोवर हंसी वासी ॥ सु०॥ ए मोह अने मन मंत्री थारे ॥ सु० ॥ तब तां रुसणो दूतो मारे ॥ सु० ॥ ३ ॥ इतरा दिन माया जालें बांध्यो ॥ सु० ॥ हवे परमानंद पद पूरण लाध्यो ॥ सु० ॥ तरा दिन वयरी वश पडियो ॥ सु० ॥ तिहां बंधन संधन सबलो अडियो ॥ सु० ॥ ४ ॥ हवे ज्ञान गुलाब करी अंग नीनो ॥ सु० ॥ थारो मुलगा रूपरो मुफरो कीनो ॥ सु०॥ मार्नु वादल मूक्यो सूरज शोहे॥ सु० ॥मानुं राहें मूक्यो शशिधर मोहे ॥ सु० ॥ ५॥ मानुं निधूम पावक प्रबल सुहायो ॥ सु० ॥मानुं माटीथी ए कंचन पायो ॥ सु० ॥ जाणे खाण खणंतां माणक पायो ॥ सु॥ तुं अनुपम दीपक तेज सवायो ॥सु॥६॥ ए हेम तणो सिंहासन देवा ॥ सु० ॥ रचियो ने बेसो करशे सेवा ॥ सु० ॥ नप देश दियो हवे मनने रंगे ॥ सु० ॥ नवि लोक जणी सुख तुमचे संगें ॥सु ॥ ७ ॥ इम वयण सुणी पटराणी केरां ॥ सु० ॥ हंस राजाने मन हर्ष घ गेरा ॥ सु० ॥ हवे प्यारी केरो विरहो नांही ॥सु० ॥ निजरूप विराज्यो निज गुणमांही ॥ सु० ॥ ७ ॥