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श्री मोदविवेकनो रास.
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सुर नर देखतां खातम अनुबल सोह ॥ १० ॥ ज्ञानावरस्यादिक प्रकृति, सेवक नाता शेष ॥ जय जय शब्द कराइया, जीत्यो वीर विशेष ॥ ११ ॥ ॥ ढाल बारमी ॥
॥ नयन निहालो रे नाहला ॥ ए देशी ॥ जडता फूरे रे योषिता, फूरे माया रे मात ॥ ए अवस्था रे क्युं य, तुं जग अमर कहात ॥ ज० ॥ १ ॥ तुं जगजीवन वालहो, तुं श्रम प्राणाधार ॥ जे वृक्ष वलगी रे वेलडी, ते वृक्ष पाम्यो संहार ॥ ज० ॥ २॥ आश घणी मनमां हती, ते रही दीसे रे आज ॥ वल्लन तुं डरलंन बे, मन मान्यो महाराज ॥ ज० ॥ ३ ॥ तुं सम
वर न कोय बे, पूरण मननी खाश || तु गुण केता रे द्वाखवू, तों वि यो घरवास ॥ ज० ॥ ४ ॥ ए तनु दीपकवाट बे, तुं वहालो तेल पूर ॥ तुं सरवर में माबली, में कमलिनी तुं सूर ॥ ज० ॥ ५ ॥ तुं वादल में दा मिनी, तुं तरुवर में पान ॥ तुं मानसर में हंसली, तुं उत्तमंग में कान ॥ ज० ॥ ६ ॥ दाडुर चातक मोर हे, तुं गिरुन घन मेह || दर्शन प्यास बु जाइयें, इम किम दीजें रे बेह ॥ ज० ॥ ७ ॥ कोमल कुमुदिनी मे बां, तुं
चन्द समान ॥ तुं तरुवर में पंखिया, कुण हवे देशे रे मान ॥ ज० ॥ ८ ॥ इा परें माया रे योषिता, फुरती धरती ढली ताम ॥ मोहतणो परि वारजे, बीजो पण गयो ग्राम ॥ ज० ॥ ए ॥ मोहतणुं मृत्यु देखीने, हर ख्या सुर नर राय ॥ फूलती वृष्टि वीरने, शिरपर कीधी रे याय ॥ ज० ॥ १० ॥ जय जय शब्द सहू कहे, यारी शक्ति अपार || हिमगिरि हीर त
परें, तुम गुण निर्मलहार ॥ ज० ॥ ११ ॥ ऐरवत जरत विदेहमें, तुं हिज सखरो हेत ॥ सकलशरीरी रे जीवने, तुं सुख बीजनो खेत ॥ ज० ॥ १२ ॥ तुं हितवचन मात ज्युं, विघ्न विदारण वीर ॥ कलियुग पावक जीपवा, अधिकुं निर्मल नीर ॥ ज० ॥ १३ ॥ तुं साहिब शिर सेहरो, नूर जविक सुखकार || नवजय हरण हरायवा, तुं पंचायण सार ॥ ज० ॥ १४॥ कऊल यमुनाजल कोकिला, एहो कालो रे पाप ॥ ते गयो दूरें या जयी, दूर गयो दुःख व्याप ॥ ज० ॥ १५ ॥ उदयाचल जिनशासनें, तुं न गो अब सूर || तिमिरपाखंम दूरें गयां, दिन दिन अधिक पंसूर ॥ ज० ॥ १६ ॥ रवि तो उगे यायमे, चन्द्र कलंकी रे होय ॥ मणि तो पवर या खियें, सुरतरुने वृक्ष जोय ॥ ज० ॥ १७ ॥ ताहरी उपम जे दुवे, ते जंग