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________________ वीतरागस्तोत्र. १७ विप्लवोपप्लुत स्थितिः ॥ ५॥ ॥ तदेवं सर्वदेवेन्यः, सर्वथा त्वं विलक्षणः॥ देवत्वेन प्रतिष्ठाप्य, कथं नाम परीदकैः ॥ ६ ॥ ॥ नावार्थः- अने सर्व जगतनी उत्पत्ति, पालन अने नाश-एं करवा माटे जेणें आदर करयो ने, एवा पण तमें नथी. अने.नाटक, हास्य, गायन-इत्यादिक उश्चष्ठितोयें करीने जेनो आचार उष्ट छे; एवा पण तमें नयी ॥५॥ वली कोमला मंत्रणथी कहे जे के हे नाव ! ते माटें परीक्षा करनारा पुरुषोयें तमारूं देवरूपत्वें करीने केम प्रतिस्थापन कस्यूँ ? कारण के तमें कहेवा बो? तो के (एवं के०) ए पूर्वोक्त प्रकारे करीने सर्व लोक प्रसिद, पशु सिंहादिवाहन रहि त, सर्व हरिहरादिक देवोथी सर्वप्रकारे करी विलक्षण कहेतांजिन रूपज बो: ॥अनुश्रोतः सरत्पर्ण,तृणकाष्ठादि युक्तिमत् ॥ प्रतिश्रोतःश्रयस्तु, कया युक्त्या प्रतीयताम् ॥७॥ ॥षयवाऽलं मंदबुद्धि,परीक्षकपरीक्षणैः॥ममापि कृतमेतेन,वैयात्येनजगत्प्रनोः॥॥ नावार्थः-ए विषे दृष्टांत कहेवामा कहे . हे नाथ ! पर्ण केतां पांदडां; तृण अने काष्ठादिक वस्तु, जलप्रवा हनीसाथे वहे ,एज योग्य वे. पड़ी ते तृण काष्ठादिक वस्तुप्रतिश्रोतः केतां जलप्रवाहनी सन्मुख गमन करनारी कोण युक्तियें प्रतीति प्रत्ये यावे ? अर्थात् कोइ पण युक्तिये ते तृणादिक वस्तुनी प्रवाह सन्मुख गमन करवानी प्रतीति आवे नहिं ॥७॥ हे प्रनी! अथवा तुबबुदिएवा परीद कोनी परीक्षायें बस. तथा हे जगत्प्रनो! माझं पण तमारी परीदाना पिष्टपे षण विषे जे उतपणुं, तेणें हवे पूर्ण श्ययु. कारण के तमारूं शान जे लद ण तेज तमारी योग्यताने कहे जे, माटें निरर्थक विचारनो उपयोग शामाटे करवो! हवे ते कयुं लक्षण ? ते पागलना श्लोकें करीने कहे जे ॥७॥ __ यदेवं सर्वसंसारि, जंतुरूप विलक्षणम् ॥ परीदता कृतधिय, स्तदेव तव लक्षणम् ॥ ए॥ ॥क्रोधलोननयाकांतं, जगदस्मादिलदाणः ॥ न गोच रोमृधियां, वीतराग कथंचन ॥१०॥ नावार्थ:-हे नाथ ! था पूर्वोक्त प्रकारे करीने जे संपूर्ण संसारी प्राणीना स्वरूपथी निन्न तमासं लक्षण , तेने निपुण पुरुषो, परीक्षायें जाणे जे ॥ ए॥' हे नाथ ! आ सर्वजगत् क्रोध, लोम अने जय ए-यें व्याप्त , अने वीतराग एवा तमें तो या सर्व जगतथी जिन्न होता थका कोइ पण प्रकारे करीने कोमल बुद्धि पुरुषोने सण गोचर एटले प्रत्यद थता नथी ॥ १० ॥ श्त्यष्टादश प्रकाशः॥ १७ ॥ me
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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