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सिंदूरप्रकरः
१३१ साथै हुँ पण काष्ठमां बली. मरीश ! कत्रिम राजायें .ते वात सांजलीने रा पीनी पासें आवी पूब्युं के तुं कांसूडानी साथै काष्ठनदण करे ? राणी ये कह्यु के महारा जीवनो एनी साथै मोहसंबंध डे, ते माटें एनी गति ते महारी गति : तेवारें कमि राजा बोल्यो के तुं काष्ठनदण म कर. ढुं शुकने सचेतन करुं बुं. एम कही पोतें पर्यकमा पोढ्यो, राणीनुं मनमना ववा सारु पोतानुं चेतन काहाढी शुकना शरीरमा प्रदेप्यु. अने पोतें सू डो थयो. ते जो विक्रमराजायें तत्काल पोतानो जीव घरोलीना शरीर मांथी काहाढीने पोताना मूल शरीरमा प्रदेप्यो, अने पोताना देहमां आवी पोतें राजा थयो. तीने राणी पासें गयो. राणी पण राजानुं मूल शरीर देखी हर्ष पामी. पडी राणी राजा प्रत्ये सर्व वृत्तांत पूयुं. राजायें कह्यु के ए वृत्तांत आ सूडो कहेशे. तेवारं सड़े मूलथी सर्व वृत्तांत संनला वीने कडं के जे मित्रशेह करशे, ते महारी पेठे कुःखी थाशे, अने जे प रोपकार करशे, ते राजानी पेठे सुख पाम ते सर्व वात सांजली राणी हर्षवंत थ३. अने मननीनांति गश्. एवामा एक व्यवहारीयो मरण पामतो दीतो तेवारें रांजायें ते सूडानो जीव व्यवहारीयानी खोल मांहे राखी सुखी यो कस्यो. एवा सऊन उर्जननां लक्षण जाणी सङनता आदरवी ॥६॥
हवे गुणिजनना संगनुं वर्णन करे.जे. धर्म ध्वस्तदयोयशश्युतनयोवित्तं प्रमत्तः पुमान् का व्यं निःप्रतिनस्तपः शमदयाशून्योऽल्पमेधाः श्रुतम्॥ वस्त्वालोकमलोचनश्चलमनाध्यानं च वांग्त्यसौ,यः सं
गंगुणिनां विमुच्य विमंतिः कल्याणमाकांदति ॥६॥ अर्थः-( यः के०) जे ( विमतिः के०) निर्बुद्धि ( पुमान के ) पुरुष (गुणिनां के०) गुणवान् पुरुषना (संगं के) संगने (विमुच्य के) मूकीने (कल्याणं के०) कल्याणने (आकांति के०) ले ले. (असो के) ए विमति पुरुष, ( ध्वस्तदयः के) गइले रुपा जेने एवो बतो (धर्म के० ) पुस्यनी ना करे ले ? एम जाणवू. तथा ते ( च्युतनयः के०) गतन्याय एवो तो ( यशः के.) यशनी ना करे ? अर्थात् अन्यनो अपकारक बतो कीर्तिनी ना करे जे ? वली (प्रमत्तः के०)आ