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सम्वोधन मिला । निश्चित ही इस सम्बोधन के पीछे एक मूलभूत संस्कृति का अलगाव प्रारम्भ में रहा होगा, किन्तु जिन मारे धर्मों और एक ही भारतीय संस्कृति से अपना अलगाव दर्शित करने के लिए विदेशी अाक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू जैसा सम्बोधन आर्य संस्कृति और उसे स्वीकार करने वाले पार्यों के लिए प्रयोग किया गया, उसमें जैन, बौद्ध, वैदिक आदि अलगअलग धर्मों की परिकल्पना सम्मिलित नहीं थी। .
आज भी सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण सागर तक की भूमि को एक हिन्दू अपनी पुण्य भूमि मानता है । पुण्य भूमि का अर्थ है, ऐसे तीर्थ स्थान और संबंधित तीर्थकर जो इस भूमि में ही उत्पन्न हुये हों और यहीं निर्वाण प्राप्त किया हो। .
मनुस्मृति में हिन्दू की परिभाषा इन शब्दों में की गई है-. 'हिंसया दूयतेयस्मात् हिन्दू रित्यामिघीयते'
अर्थात हिन्दू वह है जो हिंसात्मक कर्मों से घृणा करता है अथवा जिसे (हिं) हिंसात्मक कर्म से (दु) दुःख होता है।
मेरु तंत्र के अनुसार-हीनं च दूषयत्येष हिन्दूरित्यमिधीयते ।' हिन्दू वह है जिसे हीन कर्म अर्थात नीच कर्म से द्वप हो । ___ उल्लेखनीय है कि जिसे वस्तुतः हम हिन्दू कहते हैं वह कोई धर्म नहीं है। धर्म की पहली शर्त है, उसमें किसी एक विशेष उपास्य का होना और संबंधित उपासना की एक निश्चित पद्धति के प्रति आत्मिक निष्ठा । ।
भारत में उत्पन्न प्राध्यात्मिक और नैतिक सिद्धान्तों पर विश्वास रखने वाले अथवा उनके प्रति श्रद्धा रखने वाले तथा उनका अनुसरण करने वाले सभी व्यक्ति हिन्दू हैं।
- हिन्दू विश्व विशेषांक का प्रथम श्लोक इस सन्दर्भ में ___ उल्लिखित हैं