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( ४३ ) यशवः समपासते शिवइति वहूति वेदान्ति नौ
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कतेति नैयायिकाः ।
अर्हनित्यथ जैनशासनरताः
कर्मेति मीमांसकाः
सौ यं नौ विध्धातु वान्छितफलं त्रैलोक्य नाथो हरिः ॥
( हनुमन्नाटक १1३ ) अर्थात शैव, वेदान्ती, बौद्ध, जैन आदि शिव, ब्रह्म, बुद्ध, अर्हन् आदि के रूप में एक ही तत्व की उपासना करते हैं । यह था सही अर्थों में प्राचीनकाल की संपूर्ण सांस्कृतिक समन्वय को बनाये रखने का अभूतपूर्व प्रयास ।
अव ग्राइये इसी संदर्भ में हिन्दू धर्म की भी विवेचना कर ली जाये । यह तो स्पष्ट ही है कि सिन्धु नदी के पास बसने वाले लोगों को पश्चिम के लोगों ने हिन्दू कहा और उनके धर्म को हिन्दू कहा गया । प्राचीन शास्त्रों में हिन्दू धर्म का उल्लेख 'धर्म' शब्द से ही किया है। इससे जान पड़ता है कि प्राचीन युग में हिन्दू धर्म के सिवा दूसरा कोई धर्म नहीं रहा होगा । कहीं-कहीं इस धर्म को सनातन धर्म भी कहा जाता है । 'एक धर्मः सनातनः' वह सनातन धर्म है ।
सनातन धर्म शब्द से हिन्दू धर्म केवल एक गुण का उल्लेख होता है । सनातन का अर्थ हैनित्य स्थायी अर्थात इसकी उत्पत्ति नहीं है ।
इस लेख से साफ जाहिर होता है कि सिन्धू के इस पार